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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्यां सहित *
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प्रश्नः - णिजन्त-बोधक 'अस् और एत' होने पर अथवा णिजन्त बोधक-प्रत्ययों के लोप होने पर tagsों के आदि में हे हुए 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति होती हैं; एसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:- जिन्व बोधक-प्रत्यय चार अथवा पाँच हैं; जो कि इम प्रकार हैं:: अत एत आव आवे और पाँचवां (सूत्र संख्या ३-१५२ के विधानानुसार ) आवि है । इनमें से यदि 'श्राव, श्रावे और आवि' प्रत्ययों का सद्भाव धातुओं में हो तो ऐसी अवस्था में धातुओं में आदि में रहे हुए 'चकार' को 'आकार' की प्राप्ति नहीं होगी। ऐसे उदाहरण इस प्रकार है:- कारितम् = कराविथं कराया हुआ; कार्यते=करावी अइ अथवा कराविज्जइ उससे कराया जाता है; इन उदाहरणों में न तो णिजन्त-बोधक प्रत्यय 'अत् अथवा एत्' की प्राप्ति हुई और न णिजन्त बोधक प्रत्ययों का लोप हो हुआ है: श्रतएव 'कर' धातु में स्थित आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति भी नहीं हुई है; इसीलिये कहा गया है कि जन्तबोधक प्रत्यय 'अत् अथवा एन्' का सद्भाव होने पर ही या जिन् बोधक प्रत्ययों का लोप होने पर हीं धातुओं में रहे हुए आदि 'आकार' को 'आकार' की प्राप्ति होती हैं; अन्यथा नहीं ।
प्रश्तः -- धातु में रहे हुए आदि 'अकार' को ही आकार को प्राप्ति होती है, ऐसा भी क्यों कहा गया है ?
उत्तरः- धातु रहा हुआ आदि 'आकार' यदि किसी भी प्रकार से अस्पष्ट हो अथवा व्य वधान प्रस्त हो अथवा शब्द के मध्य में स्थित हो तो उस 'अकार' को भी 'आकार' की प्राप्ति नहीं होगी; तात्पर्य यह है कि स्पष्ट रूप से और व्यवधान रहित रूप से अवस्थित 'अकार' को ही आकार की प्राप्ति होती हैं; अन्यथा नहीं जैसे:-- संप्रामयत्ति= संगामेइ = वह लड़ाई कराता है। इस उदाहरण में 'संग्राम' धातु में आदि 'कार' अनुस्वार सहित होकर अस्पष्ट एवं व्यवधान वाला हो गया है अतएव इम आदि 'अकार' को 'आकार' की प्राप्ति नहीं हुई है। तदनुसार व्यवधान रहित तथा सप्ट रूप से रहे हुए यादि 'अकार' को ही 'आकार' की प्राप्ति होतो हैं; यह तात्पर्य हो सूत्र में रहे हुए 'आदि' शब्द से प्रतिध्वनित होता है ।
यदि कोई 'अकार' धातु के अन्त में आ जाय तो उस अकार को भी 'आकार' की प्राप्ति नहीं होवे इसलिये भी 'आदि' शब्द का उल्लेख किया गया है। जैसे:- कारितम् = कारि = कराया हुआ इस उदाहरण में अन्त में 'अकार' आया हुआ है; परन्तु इसको 'आकार' को प्राप्ति नहीं हो सकती है; इन सभी उपरोक्त कारणों से सूत्र में 'आदि' शब्द के उल्लेख करने की आवश्यकता पड़ी है । जो कि मनन करने योग्य है ।
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प्रश्नः - 'अकार' को ही 'आकार' की प्राप्ति होती है; ऐसा भी क्यों कहा गया है ?
उत्तर: -- यदि धातु के आदि में 'कार' स्वर नहीं होकर कोई दूसरा ही स्वर हो तो उस स्वर. की 'आकार' की प्राप्ति नहीं होगी । 'आकार' की प्राप्ति का सौभाग्य केवल 'अकार' के लिये हो है; अन्य