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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
संस्कृत-रूपप्राकृत-रूपान्तर
हिन्दी-अर्थ १ अभूत् (आदि नव रूपा
मैं अथवा हम; तु अथवा सीनों पुरुषों में और नीनों
तुम और वह अथवा वचतों में लुङ् लकार में)
छ हुए; हुए थे २ अभवत् (श्रादि नव रूप; दुधीभ
और हो चुके थे। तीनों पुरुषों में और तीनों वचनों में; स्लम लकार में) ३ भूय श्रादि नव रूप; तीनों पुरुषों में और तीनों वचनों में लिट् लकार में) १ आसिष्ठ (भादि नव रूप; तीनों पुरुषों में और तीनों
में अथवा हम; तू वचनों में लुछ लकार में)
अथवा तुम और २ आस्त (प्रादि न रूप, अच्छी
वह अथवा वे तीनों पुरुषों में और तीनों
बैठे; बैठे थे वयनों में; लस लकार में)
और बैठ चुके ३ आसांचके (आदि नवरूप; .
तीनों पुरुषों में और तीनों वचनों में लिट् लकार में) १ अग्रहीद (श्रादि नव रूप;
मैं न अथवा हमने तीनों पुरुषों में और तीनों
सुने अथवा तुमने वचनों में; लुक लकार में) २ अगृहणात (श्रादि नवरूप,
गण्होत्र
उमने अथवा उन्होंने; तीनों पुरुषों में और तीन
लिया; लिया था वचनों में; लइ लकार में)
अथवा ले धुके थे या ३ जग्राह (आदि नव रूप;
स्वाकार किया; स्वीकार तीनों पुरुषों में और तीनों
किया था अथवा स्वीकार वचनों में लिट लकार में)
___कर चुके थे। इस प्रकार प्राकृत भाषा में व्यञ्जनान्त धातुओं में भूतकाल के अर्थ में संस्कृत में प्राग तीनों लकारों के सभी पुरुषों के सभी वचनों के अर्थ में प्रामव्य सभी प्रत्ययों के स्थान पर केवल एक ही प्रत्यय 'इन' की आदेश-प्राप्ति होती है। तदनुसार वाक्य-रचना में पाये जाने वाले सम्बन्ध विशेष को देख करके