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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * mosinommonsooreosorrorseeneonsorrootwosrowroomsrwari णिजन्त अर्थक रूप से प्राप्तांग 'हामादि' में कूदन्त अर्थक प्रत्यय 'म' को प्राप्रि; १-१७. से कृदन्त-अर्थक प्रान प्रत्यय 'त' में से हलन्त व्यञ्जन 'त्' का लोप; ३.२ से शिजन्त- अर्थ सहित भूत कृदन्तीय विशेष. णात्मक रूप से प्राप्तांग अकारान्त पुल्लिंग 'हामाविअ' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तम्य प्रत्यय सि' के स्थान पर 'डा =ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत पर हासाविभो सिद्ध हो जाता है।
'जणो' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१६२ में की गई है।
श्यामल या संस्कृत श्राकारान्त स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप सामलाए होता है। हममें सूत्र-संख्या २-७८ से 'य व्यञ्जन का लोप; १-२६० से लोप हुए य' के पश्चात् शेष रहे हुए. मूर्धन्य 'शा' के स्थान पर दात्य 'सा' को प्राप्ति; ३-३२ से प्राप्तांग 'मामला' में स्थिन अन्त्य स्त्रीलिंग वाचक प्रत्यय 'श्री' को 'ई' की प्राप्ति, और ३-२६ से प्राप्तांग दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग 'सामली में तृनाया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टाया' के स्थान पर ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर संघ इकारान्त स्त्रीलिंग की तृतीया विभक्ति के एकवचन के रूप से प्राप्न सामलीए रूप की मिद्धि हो जाती है । ३-१५३||
मौ वा ॥३-१५४॥ अत आ इति वर्तते । आदन्ताद्धातो मौं पर अत आत्रं वा भवति ॥ हसामि हसमि । जाणामि जाणमि | लिहामि लिहमि ॥ अत इत्येव । होमि ॥
अर्थ:-जो प्राकृत धातु अकारान्त है; उनमें स्थित अन्त्य 'अ के स्थान पर पागे 'म' व्यञ्जन से प्रारम्भ होने वाले काल-बोधक-प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर 'श्रा' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है । इस प्रकार इस सूत्र का भी विधान धातुस्थ अन्त्य 'अ' को 'श्रा' रूप में परिणत करने के लिये ही किया गया है। उदाहरण इस प्रकार है:--हप्ताभि- हमामि अथवा हप्तगिमैं हँसता हूं; जानामि - जाणामि अथवा जाणमि - मैं जानता हूं लिखामि - लिहामि अथवा लिहमि मैं लिखता हू; इन बदाहरणों से प्रतीत होता है कि अकारान्त धातुओं में स्थित अन्त्य 'अ' के पो. 'म' से प्रारंभ होने वाले प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से 'श्रा' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुई है। यों अन्यत्र भी जानना चाहिये।
प्रश्न:-'अकारान्त-धानों के लिये ही ऐसा विधान क्यों किया गया है ?
उत्तरः-जो धातु अकारान्त नहीं होकर अन्य स्वरान्त हैं; उनमें स्थित उस अन्त्य स्वर की 'आ' की प्राप्ति नही होती हैइसलिये केवल 'अकारान्त' धातुओं के लिये ही पता विधान जानना चाहिये ! जैसे-भवामि होमि में होता हूँ । इस उदाहरण में प्राकृत धातु हो' के अन्त में 'श्री' स्वर