________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
'कारे' प्रेरणार्थक रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१४९ में की गई है।
क्षा
का प्रेरणार्थक रूप है। इसका प्राकृत रूप स्यामंद होता है। इसमें सूत्र संख्य - ३ से मूल संस्कृत धातु 'क्षम्' में स्थित आदि व्यञ्जन 'ज्ञ' के स्थान पर प्राकृत में 'ख' व्यञ्जन की आदेशप्राप्ति; ३-१५३ से प्राप्तांग 'खम्' में स्थित आदि स्वर 'अ' के आगे जिन्त-बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'आ' को प्राप्तिः ३-१४४ से प्राप्तांग 'बाम्' में 'जन्त-बोधक प्रत्यय 'पतु ए' की प्राप्ति और ३-९३६ से णिजन्त रूप से प्राप्तांग 'खामे' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तिस्य प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में '३' प्रत्यय की प्राप्ति होकर णिजन्त अर्थक वर्तमानकालीन प्राकृत क्रियापद का रूप खामेह सिद्ध हो जाता है ।
काft खामि और कारिभङ्ग रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१४२ में की गई हैं।
क्षाम्यते संस्कृत का पिन्तका रूप है। इसका प्राकृत रूप खामीअइ होता है। इसमें सूत्रसंख्या २ ३ से मूल संस्कृत धातु 'तम्' स्थित आदि व्यञ्जन 'ज्ञ' के स्थान पर प्राकृत में 'ख' व्यञ्जन को आदेश- प्राप्ति २ १५३ से प्राप्तांग 'खम्' में स्थित यादि स्वर 'अ' के आगे सूत्र संख्या ३-१४६ से प्राप्तव्य णिजन्त-शोधक प्रत्यय की सूत्र संख्या : १५२ से लोप व्यवस्था प्राप्त हो जाने से 'आ' की प्राप्तिः ३ ९६० से जिन्त अर्थ सहित प्राप्ताय 'खाम्' में कर्मणि-भावे प्रयोग द्योतक at '' की प्राप्तिः १-४ से प्राप्तांग खाम्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'म्' के साथ में आगे प्राप्त प्रत्यय 'ई' की संधि और ३-९३६ से रिजन्त अर्थ सहित कमणि भावे प्रयोग रूप से प्राप्तांग 'खामीम' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में लम्कीय मनुष्य प्रत्यय ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप खामीअर सिद्ध हो जाता है ।
कारज्जङ्ग' क्रियापद की सिद्धि सूत्र संख्या ३.१५२ में की गई है।
क्षाम्यते संस्कृत का रूप है। इसका प्राकृत रूप खामिज होता है। इसमें सूत्र संख्या २-३ से मूल संस्कृत धातु 'नम्' में स्थित आदि व्यञ्जन 'ज्ञ' के स्थान पर प्राकृत में 'ख' व्यखन की श्रादेश प्राप्ति ३-१५३ से प्राप्तंग 'खम्' में स्थित आदि स्वर 'अ' के आगे सूत्र - संख्या ३-१४६ से प्राप्तव्य णिजन्त-बोधक-प्रत्यय की सूत्र संख्या ३-१५९ के निर्देश से लोपावस्था प्राप्त हो जाने से 'आ' की प्राप्ति; ३-१६० से णित्रन्त-अर्थ- सहित प्राप्तांग 'खाम्' में कर्मणि भावे -प्रयोग-योतक प्रत्यय 'इज' को प्राप्ति १-५ से प्राप्तां 'खाम' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'म्' के साथ में आगे प्राप्त मध्यय 'इक्ज' की संधि और ३-१३६ सेन्ति-अर्थ-अहित कर्मणि-भावे प्रयोग रूप से प्राप्तांग 'खामिन' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप खामिलाइ सिद्ध हो जाता है।
[ २७४ |
2049046
$6666644444
+