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* प्राकृत व्याकरण *
[ २७७ ]
है; तदनुसार आगे म्' से प्रारम्भ होने वाले काल-बोधक-प्रत्यय का सदुभाव होने पर भी उस अन्त्य स्वर 'ओ' को 'आ' की प्राप्ति नहीं हुई हैं। यों यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि केवल 'अन्त्य अ' को ही 'मा' की प्राप्ति होती है; अन्य अन्य स्वर को नहीं ।
'साम' क्रियापद की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१४१ में की गई है ।
संस्कृत वर्तमानकाल का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप समि होता है। इसमें सूत्र संख्या ३. १४१ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'म' के ममान हा प्रकृत में भी मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप इसाम सिद्ध हो जाता है।
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जाना संस्कृत का वर्तमानकाल का रूप हैं। इसके प्राकृत रूप जाणाभि और जाति होते हैं । इनमें सूत्र संख्या ४-७ से संस्कृतीय मूल-धातु 'ज्ञा' के स्थानीय रूप 'जान' के स्थान पर प्राकृत में 'आम्' रूप की आदेश प्राप्ति; ३-१५४ से प्राप्त प्राकृत धातु 'जाण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के आगे 'म्' से प्रारम्भ होने वाले काल-बोधक-प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से वैकल्पिक रूप से 'आ' की प्राप्ति; और ३-१४१ से प्राप्तांग 'जाना और जाण' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'मि' के समान ही प्राकृत में भो 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से दोनों क्रियापद-रूप- 'जाणामि और जाणामे' सिद्ध हो जाते हैं।
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fear संस्कृत वर्तमानकाल का रूप है। इसके प्राकृत रूप लिहासि और लिहमि होते हैं में सूत्र - संख्या-१-१८७ से मूल संस्कृत धातु 'लिखू' में स्थित अन्त्य व्यकजन 'ख' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' की प्राप्ति; ४ - २३६ से प्राप्त हलन्त धातु 'लिहू' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३ - १५४ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'छा' के आगे 'म्' से प्रारम्भ होने वाले काल-बोधक-प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से वैकल्पिक रूप से 'आ' की प्राप्ति और ३-१४२ से प्राप्तांग लिहा और लिह' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'मि' के समान ही प्राकृत में भी 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों क्रियापद-रूप लिहामि और लिहार्म' सिद्ध हो जाते हैं।
संस्कृत वर्तमानकाल का रूप है। इनका प्राकृत रूप होमि होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-६० से मूल संस्कृत धातु 'भू' के स्थान पर प्राकृत में 'हो' रूप की आदेश-प्राप्ति और ३-२५२ से प्राप्त प्राकृत धातु 'हो' में वर्तमानकाल के तृतीयपुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तभ्य प्रत्यय 'मि' के समान हो प्राकृत में भी 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत कियापद का रूप होमि सिद्ध हो जाता है । ३-१५४ ।।
इच्च मो- सु-मे वा ॥ ३-१५५॥
अकारान्ताद्धातोः परेषु मो- मु-मेषु अत इवं चकारा आवं च वा भवतः ॥