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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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अर्थः - संस्कृत भाषा में भूतकाल के तीन भेद किये गये हैं; जिनके नाम इस प्रकार हैं:-- [?] सामान्य भूत; इसका अपर नाम अद्यतन भूतकाल भी है और इसको लुङ् लकार कहते हैं; [P] ह्यस्तन-भूत; इसका अपर नाम अद्यतन भूतकाल भी है और इसको लक्ष् लकार कहते हैं; [P] परोक्ष-भूत; इमको लिट् लकार कहते हैं । संस्कृत भाषा में इस प्रकार तीन भूत-कालिक लकार हैं; प्राचीनकाल में इनके अर्थों में मे किया जाकर तदनुसार इनका प्रयोग किया जाता था; परन्तु आजकल की प्रचलित संस्कृत भाषा में बिना भेद के इनका प्रयोग किया जाता है। इस सम्बन्ध में कोई दृढ़ नियम नहीं जाना जाता है। आधुनिक समय लकारी का भूतकाल के अर्थ में बिना किसी भी प्रकार का भेद किये प्रयोग कर लिया जाना है । इनका सामान्य परिचय इस प्रकार है: ---
(१) प्रति निकट रूप से व्यतीत हुए काल में अथवा गत कुछ दिनों में की गई क्रिया के लिए अथवा उत्पन्न हुई क्रिया के लिये सामान्य भूतकाल का अथवा अद्यतन - भूतकाल का प्रयोग किया जाता है ।
(२) अति निकट के काल की अपेक्षा से कुछ दूर के काल में अथवा कुछ वर्षों पहले की गई क्रिया के लिये अथवा उत्पन्न हुई क्रिया के लिये ह्यस्तन- भूतकाल का अथवा भगद्यतन - भूतकाल का प्रयोग किया जाता है ।
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(३) अत्यन्त दूर के काल में अथवा अनेकानेक वर्षों पहिले की गई क्रिया के लिये अथवा अत्पन्न हुई क्रिया के लिये परोक्ष-भूतकाल का प्रयोग किया जाता है जो क्रिया अपने प्रत्यक्ष में हुई हो, उसके लिये पगेक्ष मूतकाल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। अन्य भाषाओं की व्याकरण में जैसे पूर्ण भूत, अपूर्ण भूत और संदिग्ध भूत के नियम और रूप पाये जाते हैं; वैसे रूप और नियम संस्कृत भाषा में नहीं पाये जाते हैं, इन सभी के स्थान पर संस्कृत भाषा में केवल या तो सामान्य भूत का प्रयोग किया जायगा अथवा परोक्ष-भूत का यही परम्परा प्राकृत भाषा के लिये भी जानना चाहिये ।
प्राकृत भाषा में संस्कृत भाषा के समान भूतकाल अर्थक उपरोक्त तीनों लकरों का अभाव है; इसमें तो सभी भूत-कालिक लकरों के लिये और इनसे सम्बन्धित प्रथम द्वितीय तृतीय पुरुषों के लिये तथा एकवचन एवं बहुवचन के लिये एक जैसे ही समान रूप के भूतकाल अर्थक प्रत्यय पाये जाते हैं; वातुओं के साथ में इनकी संयोजना करने से प्रत्येक प्रकार का भूत-कालिक लकार बन जाया करता है । अन्दर है तो इतना सा है कि व्यञ्जनान्ताओं के लिये और स्वरान्त धातुओं के लिये भिन्न भिन्न प्रकार के भूतकाल अथक प्रत्यय है। इस प्रकार प्राकृत भाषा में सर्व सामान्य सुलभता की बात यह है कि व्यञ्जनान्त धातु के लिये अथवा स्वरान्त धातु के लिये तीनों पुरुषों में एवं दोनों वचनों में तथा सभ भूत-कालिक लकारों में एक जैसे ही प्रत्यय पाये जाते हैं। इस सूत्र संख्या ३- १६२ में स्वरान्व धातुओं में जोड़े जाने वाले भूतकाल अयंक प्रत्ययों का निर्देश किया गया है; व्यञ्जनान्स धातुओं में जोड़े जाने वाले भूतकाल अर्थक प्रत्ययों का उल्लेख इससे आगे आने वाले सूत्र संख्या ३-१६३ में किया जाने वाला
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