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* प्राकृत व्याकरखा*
[२८५ ] .00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 हसह । हसेम हसिम । हसेमु हसि ॥ पञ्चमी । हसेउ हसउ । सुणेउ सुणउ ॥ शत । हसेन्तो हसन्तो । कचिन्न भवति । जयइ ।। क्वचिदात्वमपि । सुणाउ ।। .
अर्थ:- प्राकृत-भाषा की अकारान्त धातुओं में वर्तमानकाल के पुरुष बोधक-प्रत्ययों का सद्भाव होने पर अथवा अथवा प्राज्ञार्थक या विधि अर्थक ल कारों के प्रत्ययों का सद्भाव होने पर अथवा शत बोधक याने वर्तमान-कृदन्त-द्योतक-प्रत्ययों का सद्भाव होने पर उन अकारान्त घातुओं में स्थित भन्स्य स्वर 'अ' के स्थान पर वैकहिक रूप से 'ए' को प्राप्ति हुआ करतो है । वर्तमानकाल से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार हैं:-हसतिहसेइ अथवा हाइ = वह हँसता है । हसामः-सेम अथवा हसिम और हसमु अथवा हमिमुहम हंसते हैं। इन्न उदाहरणों में यह बतलाया गया है कि 'हस' धातु अकारान्त है
और इसमे वर्तमान-काल ग्रोतक प्रत्यय 'इ' और 'म' की प्राप्ति होने पर इस 'हस' धातु के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्रान हुई है। इसी प्रकार से आज्ञार्थक और विधि-अर्थक लकारों फ उदाहरण म इस प्रकार हैं:-हमतुम्हसेउ अश्या हसउ-वह हँसे; अणोतु (शणोतु) = सुणेउ अथवा सुण-वह सुने; इन आज्ञाधक-बाधक उदाहरणों से भी यही प्रतीत होता है कि अकारान्त धातु 'इस और सुण' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे आज्ञार्थक-प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से जैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति हुई है। क्त्तमान-कृदन्त के उदाहरण यों हैं:-हसत अथवा हसन - हसेन्तो हसन्तो-हँसता हुआ; इस वर्तमान कृदन्त-योनक उदाहरण में भी यही प्रदर्शित किया गया है कि प्राकृतधातु 'हस' के अन्त्यस्थ 'अ' क स्थान पर आगे वर्तमान-कृदन्त-योतक प्रत्यय स्त' का सद्भाव होने के कारण से वैकल्पिक रूप से 'ए' को प्राप्ति हुई है। इस प्रकार इस सूत्र में यह विधान निश्चित किया गया है कि वर्तमानकाल थे, आज्ञार्थ-विध्यर्थक लकार के और वर्तमानकाल कृदन्त के प्रत्यय परे रहने पर अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर बैकल्पिक रूप से 'ए' को प्राप्ति होती है।
कभी कभी ऐसा भी देखा जाता है कि प्रकारान्त-धातु के अन्त्यस्य 'अ' के स्थान पर उपरोक्त प्रत्ययों का सद्भाव होने पर भी 'ग' की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे-जयति जयद-वह जीतता है। यहाँ पर प्राकृत में 'जयेई' रूप नहीं बनेगा । कभी कभी अकारान्त धातु के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर उपरोक्त प्रत्ययों का सद्भाव होने पर 'श्रा' की प्राप्ति भी देखी जाती है । जैसे:-श्रणोतु-सुमाउ = वह श्रवण करें। इस उदाहरण में अकारान्त प्राकृत धातु 'सुरण' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे , आशार्थक-लकार क प्रत्यय का सदुभाष होकर 'श्रा' की प्राप्ति हो गई है।
हसति साफत का अकर्मक रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेइ और हसइ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-१५० से मूल प्राकृत अकारान्त धातु 'हस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर चैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति और ३-१३॥ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'प्ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप हसे सिद्ध हो जाता है।