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* प्राकृत व्याकरण * ++++++++++ ++++++84 9999999$$$$$}}+++++++++++++++++++++++++++++ के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता हुआ देखा जाता है। ऐसी स्थिति कमी कभी और कहीं कहीं पर ही होती है; नित्य और सर्वत्र ऐसा नहीं होता है। द्वितीया के स्थान पर पष्ठी के प्रयोग के उदाहरण यों हैं:-सीमाधरं वन्ने मोमाधरस्स वन्दे मैं सीमाधर को वंदना करता हूं: तस्याः मुखम् स्मरामः तिस्सा मुहस्स भरिमो हम उसके मुख को स्मरण करते हैं। तृतीया के भान पर षष्ठी के प्रयोग के दृष्टान्त इप्स प्रकार हैं:-धनेन लब्धः-धणम लद्धो-धन से वह प्राप्त हुअा है; चिरेण मुक्ता-चिरस्स मुका-चिर काल से वह मुक्त हुई है । तैः एतत् अनाचरितम् ति एअम् अणाइएनके द्वारा यह आचरित नहीं हुमा है; इन उदाहरणों में धनेन के स्थान पर घणाम का, चिरेण के स्थान पर चिरस्म का और तैः क स्थान पर
मि का प्रयोग यह बतलाता है कि तृतीया के स्थान पर प्राकृत में पछी का प्रयोग किया गया है। पञ्चमी के स्थान पर पष्ठो के प्रयोग के उदाहरण निम्न प्रकार से हैं:-चोरात बिभेति-चोरस्त बीहइ = षह चोर से डरता है; इतराणि लघु अक्षराणि येभ्यः पादान्तेन सहितेभ्या इअराई लहुअक्षराई जाण पायन्तिमिल्ल-सहिश्राग: इन उदाहरणों में चोरात के स्थान पर चोरस्स का, येभ्यः के स्थान पर जाण का और सहितेभ्यः के स्थान पर सहिप्राण का प्रयोग यह बतलाता है कि पञ्चमी के स्थान पर प्राकृत में षष्ठी का प्रयोग किया गया है । अन्तिम उदाहरण अधुरा होने से हिन्दी अर्थ नहीं लिखा जा सका है। इसी प्रकार से सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पष्ठी विभक्ति के प्रयोग का नमूना यों है: -पृष्ठे केश-मार:-पिटीर केस-मारो=पीठ पर केशों का भार याने ममूह है। इस उदाहरण में पृष्ठे के स्थान पर पिट्ठोए का प्रयोग यह प्रदर्शित करता है कि सप्तमी के स्थान पर प्राकृत में षष्ठी का प्रयोग किया गया है ।
सामाधरम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त पुंल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप सीमाधरस्स (किया गया) है । इसमें सूत्र-मख्या ३.१३४ से द्वितीया के स्थान पर षष्ठो का प्रयोग हुश्रा है; तदनुसार सूत्र संख्या ३-१० से प्राकृत रूप सीमा घर में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय उसयस के स्थान पर 'स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सीमावरस्स रूप की सिद्धि हो जाती है।
बन्ने' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२४ में को गई है। 'तिस्ता' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-६४ में की गई है।
मुखम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त नपुसकलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप मुहल्स है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१३४ से द्वितीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग हुआ है; १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' को प्रारित और ३-१० से प्राप्त प्राकृत रूप मुह में षष्ठी विभक्ति के पकवचन में संस्कृतीय प्राप्तब्य प्रत्यय 'डास = अस के स्थान पर प्राकृत में 'रस' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर महस्स रूप सिद्ध हो जाता है।
स्मरामः संस्कृत वर्तमान कालीन तृतीया पुरुष का बहुवचनान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप मरिमो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४.७४ से संस्कृतीय मूल धातु 'मृ == स्मर' के स्थान पर 'भर' की आदेश-प्राप्ति; ४-२३६ से हलन्त व्यञ्जनान्त धातु 'भर' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५५