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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * roore.orrenetworrenemierwortramworroworwearers.comseworketin
हसन्ति संस्कृत का वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष का बहुवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रुप है । इसका प्राकृत रूप भी इसन्ति ही होता है। इसमें सूत्र संख्या ३.१४२ से प्राकृत-धातु 'हस' में धर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हसन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
पेपन्ते संस्कृत का वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष का बहुवचनान्त आत्मनेपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत-रूप धन्ति होता है। इसमें सूत्र संख्या १.२३१ से मूल धातु वेप' में स्थित 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; तत्पश्चात प्राप्तांग 'ये' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में संस्कृत में श्रात्मनेपदीय प्राप्तस्य प्रत्यय "अन्ते-न्ते' के स्थान पर प्राफत में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत रूप वेवन्ति सिद्ध हो जाता है।
हासयन्ति संस्कृत का वर्तमान काल का प्रथम पुरुष रूप बहुवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप हसिजन्ति होता है । इममें सूत्र संख्या ३-१६० से मूल धातु हस में भाव-विधि अर्थ में 'इज्ज' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१० से 'हस' धातु में स्थित अन्त्य स्वर के धागे प्राप्त प्रत्यय 'इजन' की 'इ' होने से लोप; १-५ से हलन्त 'हस' के साथ में आगे रहे हुए प्रत्यय रूप 'जज' की संधि होकर 'इसिज्ज' अंग की प्राप्ति और ३-१४२ से प्राप्तांग 'हसिज' में वर्तमान काल के बहुवचनात्मक प्रथम पुरुष में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हसिज्जन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
__ रमयन्ति संस्कृत का वर्तमान काल के प्रथम पुरुष का बहुवचनान्त भाव-विधि द्योतक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप रमिज्जन्ति होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.१६० से मूल-धातु 'रम में भाव विधि योतक 'इन' प्रत्यय की प्रामि; -१० से 'रम' धातु में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के आगे प्रात्र प्रत्यय 'इज्ज' को 'इ' होने से लोप; 1-4 से हलन्त 'रम्' के साथ में आगे रहे हुए प्रत्यय रूप 'इज्ज' की संधि होकर 'रमिज' अंग की प्राप्ति और ३-१४२ से प्राप्तांग 'रमिज में वसमानकाल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रमिन्जन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
'गजन्ते' 'रखे' और 'महा' तीनों रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१८७ में की गई है।
बिभ्यति संस्कृत का वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के बहुवचनात्मक अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप मोहन्ते होता है। इसमें सूत्र-सख्या-४-५३ से भय-अर्थक संस्कृत-धातु 'भा' के स्थान पर प्राकृत में 'बी' धातु-रूप की आदेश-प्राप्ति और ३-१४२ से प्राप्तांग 'बीह' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में 'न्ते' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बोहन्त रूप सिद्ध हो जाता है।
राक्षसभ्यः संस्कृत का पञ्चमी विभक्ति का बहुवचनान्त पुल्लिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप रखसाणं है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'रा' में स्थित दीर्घ स्वर 'या' के स्थान पर 'अ' को प्रारित २-३ से 'न' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'ख' को द्वित्व 'स्व' की प्राप्ति, २-६० से