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*प्राकृत व्याकरण, Wooootsradheotroserotteroserotronewsroorseworterroristomers+
o m मस्ययों का प्रयोग किया जा सकता है। 'ए और से' का नहीं । अकारान्त-धातुओं के उदाहरण इस प्रकार है:--हमति हसइ = यह हँसता है अथवा वह हंपती है । हससि = हससि =तू हंसता है अथवा सू हँसती है । वेपते = घेवइ = यह कापता है अथवा वह कांपती है । वेपसे = वेबसि तू कांपता है अथवा तू कांपता है । इत्यादि।
'हसए' (क्रियापद) रूप को सिसि सूत्र-संख्या १३ में की गई है। 'हससे' (क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१४० में की गई है।
स्वरते संस्कृत का वर्तमान काल का प्रथम पुरुष का पक्रवचनान्त श्रात्मनेपदीय अर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृतीय रूप तुपरए होता है। इसमें सूत्र संख्या ४.१७० से संस्कृतीय धातु 'स्वर' के स्थान पर प्राकृत में तुवर रूप की आदेश-प्रानि४-२२६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में प्रामा संस्कृतीय श्राप होय प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की राप्ति होकर तुवरए रूप सिद्ध हो जाता है।
त्वरसे संस्कृत का वर्तमान काल का द्वितीय पुरुष का एकवचनान्त अात्मनेपदीय अकर्मक कियापद का रूप है इसका प्राकृत-रूप तुवरसे होता है । इसमें सूत्र संख्या ४-१७० से 'स्वर' के स्थान पर 'तुवर' की प्रादेश प्राप्ति; ४.२३६ से 'सुवर' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३.१४० से वर्तमान काल के द्वितीय पुरुष के एकवचन में प्राप्तब्य संस्कृतीय-प्रात्मनेपदीय प्रत्यय 'से' के स्थान पर प्राकत में भो 'स' प्रत्यय की प्राप्ति क्षेकर तुपरसे रूप सिद्ध हो जाता है ।
फरोसि संस्कृत का वर्तमानकाज का प्रथम पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप करए होता है । इसमें सूत्र-संख्या ४-२३४ से मूल संस्कृत धातु 'कृ' में स्थित्त अन्त्य 'ऋ' के स्थान पर 'अर' आदेश की प्राप्ति होकर अंग रूप से कर' की प्रप्ति और ३.१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में प्राप्तम्य संस्कृतीय परस्मैपदीय प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर करए रूप सिद्ध हो जाता हैं।
करोषि संस्कृत का वर्तमानकाल का द्वितीय पुरुष का एकवचानन्त परस्मैपदीय सकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप करसे होता है । इसमें सूत्र संख्या ४-२३४ से संस्कृत धातु 'कृ' के स्थान पर प्राकृत में 'कर' रूप की प्राप्ति और ३-१४० से प्राप्तांग धातु 'कर' में वर्तमान काल के द्वितीय पुरुष के एक बचन में प्राकृत में 'से' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फरसे रूप सिद्ध हो जाता है।
ठाई ( क्रियापद) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १.१९१ में की गई है।
तिष्ठसि संस्कृत को वर्तमान काल का द्वितीय पुरुष का एक वचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप ठासि होता है । इसमें सूत्र संख्या ४.१६ से मूल संस्कृत धातु