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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * ..10000+soooootoseximoonkewestoreworkwormanawareneusernoonsert.in हसए । इससे ।। तुवरए। तुघरसे ॥ करए करसे ॥ अन इति किम् । ठाइ । ठासि ॥ वसुआइ बसुआसि ॥ होइ । होसि ॥ एवकारोकारान्ताद् एच से एव भवत इति विपरीतावधारणनिषेधार्थः । तेनाकारान्ताद् इच् सि इत्येतावपि सिद्धौ ॥ हसइ । हससि ।। वेवइ । वेत्रसि ।।
अर्थ:-सूत्र संख्या ३-१३६ में और ३-१४० में वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम-पुरुष के अर्थ में तथा द्वितीय पुरुष के अर्थ में कम से जो १८=ए' एवं से प्रत्यय का उल्लेख किया गया है, वे दोनों प्रत्यय केवल अकारान्त धातुओं में प्रयुक्त किये जा सकते हैं, इनका प्रयोग श्राकारान्त, श्राकारान्त मादि धातुओं में नहीं किया जा सकता है । उदाहरण इस प्रकार है:-हमति-हसए- वह हंसता है अथवा वह हंसती है। हप्ति-हससे= तू हंमता है अथवा तू हंसती है । वरते = तुवरए- वह जल्दी करता है अथवा वह जल्दी करती है । त्यरस = तुवरसे = तू जल्दी करता है अथवा तू जल्दी करती है । करोति - करए - वह करता है अथवा वह करती है । करोषि = करसे = तू करता है अथवा तू करती है । इल्यादि ।
प्रश्न:-अकारान्त धातुओं में ही 'ए' तथा 'से' का प्रयोग किया जा सकता है, ऐमा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः-अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त श्राफागन्त, बोकारान्त धातुओं में इन 'ए' तथा 'से' प्रत्ययों को प्रयोग कभी भी नहीं होता है और अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त शेष धातुओं में केवल 'इ' तथा 'सि' का ही प्रयोग होता है, ऐमी निश्चयात्मक स्थिति होने से हो 'अकारान्त' जसे विशेषणात्मक शब्द को संयोजना करनी पड़ी है । उदाहरण इस प्रकार है:- तिष्ठति = ठाइ = वह ठहरता है अथवा वह ठहरती है । तिष्ठमि = ठास = तू ठहरता है अथवा तू ठहरती हैं। उद्वाति = वसुबाइ वह सूखता है अथवा वह सूखती है । उदासि = बसुआमि = तू सूखता है अथवा त् सूखती है। भवति = होइ = वह होता है अथवा वह होती है । भवास -सि-तू होता है अथवा तू होता है, इत्यादि ।
मूल सूत्र में जपर जो 'एव' जोड़ा गया है उसका तात्पर्य यह भी है कि कोई व्यक्ति यह नहीं ममम ले कि 'अकारान्त धातुओं में केवल 'ए' और 'से' प्रत्यय ही जोड़े जाते हैं और 'इ' तथा 'सि' प्रत्यय नहीं जोड़े जाते हैं; ऐमा विपरीत और निश्चयात्मक अर्थ का निषेध करने के लिए ही एव' अव्यय को सूत्र में स्थान दिया गया है। तदनुसार पाठक-गण यह अच्छी तरह से समझ लें कि अकारान्त धातुओं में तो 'ए' और 'से' के समान हो 'इ' तथा "म' को भी प्राप्ति अवश्यमेव होती है; किन्तु अक्रान्ति के सिवाय श्राकान्ति, ओकारान्त आदि धातुओं में केवल 'इ' तथा 'सि' की प्राप्ति होकर 'ए' एवं 'से' की प्राप्ति का निश्चयात्मक रूप से निषेध है । इस प्रकार से प्राकारान्त, ओकारान्त धातुओं के समान ही अकारान्त धातुओं में भी 'इ' तथा 'सि' प्रत्ययों की प्राप्ति अवश्यमेव होती है। इस विवेचना से यह प्रमाणित होता है कि अकारान्त धातुओं में तो 'इ, ए, सि, से' इन चारों प्रकार के प्रत्ययों की प्राप्ति होती है परन्तु आकारान्त, बोकारान्त श्रादि धातुओं में केवल 'इ और प्सि' इन दो