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* प्राकृत व्याकरण *
[ २४५] Roorkworrroresstormerorrectoriomwwestensinesssssssnotoriorrore...] धातु 'म' में स्थित 'ऋ' के स्थान पर प्राकृत में 'श्रर' की प्राप्ति होकर प्राकृत में 'मर' अंग रूप की प्राप्ति, तत्पश्चात् ३-१४१ की वृस से वर्तमान काल के ततीय पुरुष के एकबाचन में संस्कृत में प्राप्तव्य श्रात्मनेपदीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्तन्य प्रत्यय 'मि' में स्थित हस्व स्वर 'इ' का लोप हो कर हलन्त रूप से प्राप्त 'म' प्रत्यय की अनुम्बार की प्राप्ति ओर १-२३ से प्राप्त हलन्त प्रत्यय 'म् को अनुस्वार को प्राप्ति होकर प्राकृत क्रिया पद का रूप मरं सिद्ध हो जाता
बहुप्यायस्य न्ति न्ते इरे ॥ ३-१४२ ॥ त्यादीनां परम्मैपदात्मनेपदानामाधत्रय संबन्धिना बहुषु वर्तमानस्य वचनस्य स्थाने न्ति ने इरे इस्लादेशा मयन्ति । इतति । चन्हि । हसिज्जन्ति । रमिअन्ति । गज्जन्ते से मेहा ।। बोहन्ते रक्खसाणं च ॥ उपमन्ते कइ-
हिय-पायो कन्य-रयणाई ।। दोरिण चि न पहुपिर वाहू । न प्रभवत इत्यर्थः ॥ विच्छुहिरे । विक्षुभ्यन्तीत्यर्थः ।। क्वचित्र इरे एकत्वेपि । सहरे गामचिखक्लो । शुष्यतीत्यर्थः ॥
अर्थ:-संस्कृत भाषा में प्रथम (पुरुष अन्य पुरुष) के बटुवचन में वर्तमान-काल में प्रयुक्त होने वाले परस्मैपदीय और श्रात्मनेपदीय प्रत्यय 'अन्ति' और 'अन्ते' के स्थान पर प्राकृत में 'न्ति, न्ते
और हरे' प्रत्ययों की श्राद्देश-प्राप्ति हुश्रा करती है। उदाहरण इस प्रकार हैं:--हसन्नि-हसन्ति वे हँसते हैं अथवा हैमती हैं । वेपन्त वेवन्ति वे कांपते हैं अथवा वे कापती हैं | हासयन्ति हसिन्नन्ति-वे हसाये जाते अथवा वे हमाई जाती हैं । रमयन्ति-रमिनन्ति वे खेलाये जाते हैं अथवा खेलायी जाती हैं। गर्जन्ति खे मेघाः = गजन्ते खे मेहा - बादल श्राकाश में गर्जना करते हैं । बिभ्यति राक्षसेभ्यः-बोहन्ते रक्खसाणं = वे राक्षमों से डरते हैं अथवा डरती हैं। उत्पद्यन्ते कवि हृदय सागरे काव्य-रत्नानि - मुष्पजन्ते-कइ-
हिय-सायरे कव्व-रयणाइ कवियों के हृदय रूप समुद्र में काव्य रूप रत्न उत्पन्न होते रहते हैं ।द्वौ अपि न प्रभवत: बाहू =दोरिण दिन पहुप्पिर बाहू दोनों ही भुजाएं प्रभावित नहीं होती हैं। वितुभ्यन्ति-विहिरे-वे घबराते हैं अथवा वे घबड़ाती हैं। वे चंचल होती हैं। इन उदाहरणों को देखने से पता चलता है कि संस्कृतीय परस्मैपदीय अथवा आत्मनेपदीय प्रत्ययों के स्थान पर वर्तमान काल प्रथम पुरुष के बहुवचन में प्राकृत में 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्ययों को प्राप्ति हुश्रा करती है । कहीं कहीं पर वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के बहुवचन में प्राकृत में बहुववनीय प्रत्यय 'इरे' की प्राप्ति भी देखी जाती है । उदाहरण इस प्रकार है:-शुष्यति प्राम-कर्दमः = सुसदरे गाम-चिखलो = गाँव का कीचड़ सूखता है । इस उदाहरण में संस्कृतीय क्रियापद 'शुष्यात' एकवचनात्मक है तदनुसार इसका प्राकृत रूपान्तर सूसइ अथवा सूसए होना चाहिये था, किन्तु 'सूसइरे' ऐमा रूपान्तर करके प्राकृतीय बहुवचनात्मक प्रत्यय 'इरे' को संयोजना की गई है। ऐसा प्रसंग कभी कभी हो देखा जाता है। सर्वत्र महीं। इसे 'बहुलम्' सत्र के अन्तर्गत हो समझना चाहिये ।