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* प्राकृत व्याकरण amsoorsetorwwsecorrenternsxetterrowesorrkestreamsootrewarsooconowin
हसास संस्कृत का वर्तमान काल का द्वितीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसकं प्राकृत रूप हसास और हससे होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१४० से 'हस' धातु में वतमामकोल के द्वितीय-पुरुप एक वचनाथ में प्राकृत में कास सि' और 'स' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर हसास तथा हसस रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
वेपसे संस्कृत का वर्तमानकाल का द्वितीय पुरुष का एकवचनान्त आत्मनेपदीय अकर्मक कियापद का रूप है ! सप्तये प्रापन पदमि और मंत्र से होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १.२३१ से 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति और ३-१४० में प्राप्त 'वेव' धातु में वर्तमान काल के द्विनीय पुरुष के एकवचनार्थ में श्रमसे 'सि' और 'से' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर वेवास और वेपसे रूप सिद्ध हो जाते हैं । ३-१४० ।।
तृतीयस्य मिः ॥ ३-१४१॥ त्यादीनां परस्मैपदानामात्मनेपदानां च तृतीयस्य त्रयस्यायस्य वचनस्य स्थाने मिरादेशो भवति । हसामि । वेदामि ।। बहुलाधिकाराद् मियः स्थानीयस्य मेरिकार लोपश्च ॥ बहु-जाणयरूसि सक्क । शक्नोमीर्थः ॥ न मरं । न म्रिये इत्यर्थः ।
अर्थः-संस्कृत भाषा में तृतीय पुरुष के ( उत्तम पुरुष के) एक वचन में वर्तमानकाल में प्रयुक्त होने वाले परस्मैपदीय और थारमनेपलीय प्रत्यय 'मि' और 'इ' के स्थान पर प्राकृत में 'मि' प्रत्यय की
आदेश प्राप्ति हुआ करती है। उदाहरण इस प्रकार है:-हसामि-हसामि मैं हंसता हूँ अथवा मैं हंसती हूँ । वेपे = वेवामि = मैं कॉपता हूं अथवा मैं कापती हूँ। 'बहुलम्' सूत्र के अधिकार से प्राकृतीय प्राम प्रत्यय 'मि' में स्थित 'इ' स्वर का कहीं कहीं पर लोप भी हो जाया करता है; तदनुसार लोप हुए स्वर 'इ' के पश्चात शेष रहे हए प्रत्यय रूप हलन्त 'म' का सूत्र संख्या १-२३ के अनुसार अनुस्वार हो जाता है। उदाहरण इस प्रकार है:-हे बहु-शानक ! रोषितुम् शक्नोमिहे बहु जाणय ! रूमि सक्कं - हे बहुज्ञानी ! मैं रोष करने के लिए समर्थ हूँ। इस अदाहरण में सकामि के स्थान पर सवं की प्रानि हुई है। जो यह प्रदर्शित करता है कि प्राप्तव्य प्रत्यय 'मि' के स्थान पर प्रत्ययस्य 'इ' स्वर का लोप होकर शेष प्रत्यय रूप हलन्त 'म' का अनुस्वार हो गया है । आत्मनेपदीय धातुका उदाहरण इस प्रकार है:-न म्रिये = न मरं = मैं नहीं मरता हूं अथवा मैं नहीं मरती हूँ; यहां पर प्राकृत में मरामि के स्थान पर प्राप्त रूप 'मरं' यह निर्देश करता है कि 'मि' प्रत्यय के स्थान पर उपरोक्त विधानानुसार हलन्त 'म' की ही प्रत्यय रूप से प्राप्ति हुई है। यों अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये।
हसामि संस्कृत का वर्तमानकाल का तृतीय पुरुष का एक वचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक कियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी हसामि हो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-३-१५४ से मूल प्राकृत धातु 'इस में स्थित अन्त्य हस्थ स्वर 'अ' को 'आ' की प्राप्ति और ३-१४१ से प्राप्त प्राकृलीय धासु 'हसा'