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* प्राकृत व्याकरण *
[ २४६ ] Koreanervernoornstoriesootrarerso000000rnetroot000***600kworrotram लोप; ३-१४२ की वृत्ति के आधार से मूल-संस्कृत-शब्द 'कदम' के स्थान पर देशज-भाषामें चिखल्ल शब्द की आदेश प्रामि; ३-२ से प्राप्त देशज शब्द गाम-
चिखल्ल' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त लिंजग में संस्कृतीय प्रारतव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर देशज-प्राकृत पद 'गाम-
चिखल्लो' सिद्ध हो जाता है । ३.१४२ ।।
मध्यमस्येत्था-हचौ ॥ ३-१४३॥ त्यादीनां परस्मैपदात्मनेपदानां मध्यमस्य त्रयस्य बहुषु वर्तमानस्य स्थाने इत्या हच् इत्येताबादेशौ भवतः ॥ हसित्था । हसह । वेवित्था । वह । बाहुलकादित्थान्यत्रापि । यद्यचे रोचते । जं जं त रोइत्या । हच् इति चकारः इह-इचोईस्य (४-२६८) इत्यत्र विशेषणार्थः ।।
अर्थ:-संस्कृत-धातुपों में वर्तमान-काल के द्वितीय पुरुष के द्विवचनार्थ में तथा बहुवचनाथ में परस्मैपदीय-धातुओं में क्रम से संयोजित होने वाले प्रत्यय यस्' तथा 'थ' के स्थान पर और श्रामनेपदीय धातु प्रों में क्रम से संयोजित होने वाले प्रत्यय 'इथे' और '' के स्थान पर प्राकृत में 'इत्था' और 'हच्-ह' प्रत्ययों की अादेश प्राप्ति होती हैं । उदाहरण इस प्रकार है:-हमयः = हसिया और हसह = तुम दोनों हँसते हो; अथवा तुप दोनों हँसती हो । हपथ = हसित्था और हसह = तुम हँसते हो अथवा तुम है पती हो । वेपथ =विथा और वह = तुम दोनों कांपते हो अथवा तुम दोनों कांपती हो । वेपवे = वेविस्था और वह = तुम (मब) कांपते हो अथवा तुम (सब) कापतो हो। 'बहुलम्' सूत्र के अधिकार से 'इत्या' प्रत्यय का प्रयोग द्वितीय पुरुष के अतिरिक्त अन्य पुरुष के अर्थ में भी प्रयुक्त होना हा देखा जाता है । जैसे:-यत् यत् ते राचले = जं जं ते रोइत्या - जो जो तुझे रुचता है; इत्यादि । यहां पर संस्नीय क्रियापद रोचते में वर्तमान कालोन प्रथम पुरुप का एकवचन उपस्थित है; जबकि इसी के प्राकृत रूपान्तर रोइत्था में द्वितीय पुरुष के बहुवचन का प्रत्यय 'इत्या' प्रदान किया गया है। यों वर्तमान कालान द्वितीय पुरुष के बहुवचन में प्रयुक्त होने वाले प्रत्यय 'इत्था' के प्रयोग को अनियमितता कभी कभी एवं कहीं कहीं पर पाई जाती है। उपरोक्न 'ह' प्रत्यय के साथ में जो 'चकार' जोड़ा गया है; उम का तात्पर्य यह है कि प्रागे सूत्र-संख्या ४-२६८ से इह-हचोहस्य 'सूत्र का निर्माण किया जाकर इस 'ह' प्रत्यय के संबंध में शोर मनी भाषा में होने वाले परिवर्तन को प्रदर्शित किया जायगा । श्रतएच 'सूत्र रचना' करने की दृष्टि से 'ह' प्रत्यय के अन्त में हलन्त 'च' की संयोजना की गई है।
हसथः तथा हसथ संस्कृत के वर्तमान काल के द्वितीय पुरुष के क्रम से द्विवचन और बहुवचन के अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इसके प्राकृत रूप शेनों वचनों में समान रूप से ही हसिस्था एवं हसह होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-१३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग करने की आदेश प्राप्ति, 1-१० से हम धातु के अन्त्य स्वर 'अ' के आगे प्राप्त प्रत्यय 'इत्या' को 'इ' का सद्भाव