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* प्राकृत व्याकरया *
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भालानाम्, गुरुणाम्, गिरीणाम्, सखीनाम, वधूनाम्, घनमू=मालाण, गिरीण, गुरुण, सहोण बहूण
= मालाओं का पहाड़ों का गुरूजनों का मत्रियों का बहुओं का धन तृतीया विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय 'टा' से सम्बन्धित सूत्र पहले कहे गये हैं जो कि इस प्रकार हैं:- टोणा, (३०२४) और 'दास को रदादिदेद्वा तु मे (२६); इनकी कार्य-विधि इनको वृत्त में बतलाये गये विधान के अनुसार ही समझ लेना चाहिये । तृतीया विभक्ति के बहुवचन के रूपों के निर्माण हेतु जो सूत्र भिमा हि हिं हिं', (३७) कहा गया है; उसका कार्यातिदेश इन आकारान्त इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, उकारान्त पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग वाले शब्दों के लिए भी प्राप्त होता है; यह ध्यान में रहे। उदाहरण इस प्रकार हैं:- मालाभिः गिभिः गुरुभिः सखीभिः वधूभिः कृतम् = मालाहि हि गुरूहि सोहि बहूहि कथं मालाओं से पहाड़ों से, गुरु-जनों से मखियों से, बधुओं से किया गया है। इसी प्रकार से इन शब्दों में 'ह' और 'हं' प्रत्ययों की संप्राप्ति भी तृतीया विभक्ति के बहुवचन के निर्माण हेतु की जाती हैं। जैसे कि मालाहि मालाहि गुरूहि, गुरूहिं इत्यादि ।
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विभक्ति एकवचन के रूपों के निर्माण हेतु जो सूत्र इसेस तो-दो -दु-हि- हिन्सो-लुकः
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(८) कहा गया है; उसका कार्यानदेश इन श्राकारान्त, इकारान्त उकारान्त आदि खालिंग वाले शब्द के लिए भी होता है। उदाहरण इस प्रकार हैं:- गलायाः, बुद्धधा बुद्धे, घेन्वाः, धेनोः आगतः = मालाओ. मालाड मालाहिती बुद्धीश्रो, बुद्धी बुद्धीन्टिो घेणू घेणूड घेणूहितो आगो माला से गाय से, बुद्धि से श्राया हुआ है । इस सम्बन्ध में सूत्र संख्या ३-१०६ और ३-१२७ में उल्लिखित नियम का भी ध्यान रखना चाहिये; जैसा कि आगे बतलाया जाने वाला है। तदनुवार 'लुक प्रत्यय का और हि अत्यय का' इन शब्दों के लिये प्रभाव होता है। सूत्र संख्या ३-३० के अनुसार आकारान्त शब्दों के लिये विभक्ति में प्रागतव्य प्रत्यय 'आ' का भी निषेध होता है।
पञ्चमी त्रिभक्ति के बहुवचन के रूपों के निर्माण हेतु जो सूत्र -'म तो दो दुहि हिन्दी मुन्ती (३-६)' कहा गया है; उसका कार्यातिदेश इन आकारान्त आदि शब्दों के लिये भी होता है । उदाहरण इस प्रकार है: - मालाभ्यामालाही मालमुन्नी 'माल मालाओ मालाव' रूप वृत्ति में प्रदान नहीं किये गये है; किन्तु इनका सद्भाव है। केवल 'ह' प्रत्यय का अभाव जानना जैसा कि सूत्र-संख्या ३-१२७ सें इसका निषेध किया जाने वाला है। इसी प्रकार से 'गिरीहिन्ता' आदि रूमें को कल्पना स्वमेव कर लेनी चाहिये। ऐसा तात्पर्य प्रतिध्वनित होता हूँ ।
पठी विभक्ति के एकवचन के रूपों के निर्माण हेतु जो सूत्र - 'सः सः (३-१० ) ' कहा गया है; उसका कार्यातिदेश पुल्लिंग और नपुंसकलिंग वाले इकारान्त उकारान्त आदि शब्दों के लिये भी होता | उदाहरण इस प्रकार हैं: - गिरो-गिरिस् गिरि का पहाड़ का; गुरोः गुरुस्स गुरूजन का दमः दहिस्त = दही का; मुलम्म=मुहरल =मुख क्का; इत्यादि । बोलिंग वाले शब्दों के लिये इस सूत्र संख्या ३-१०