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* त्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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भ्यसश्च हिः !! ३-१२७ ॥
श्राकारान्तादिम्यो दन्तवत् प्राप्तो भ्यसो सेव हिर्न भवति ॥ माला हिन्तो । माला सुन्तो । एवं श्रग्गीहिन्तो । इत्यादि ॥ मालाओं । मालाउ । मालाहिन्तो ॥ एवं अगी । इत्यादि ॥
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[ २२० ]
अर्थ :-- प्राकृत भाषा के पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में और बहुवचन में अकारान्त शब्दों के समान ही सूत्र संख्या ३-१२४ के निर्देश से आकारान्त इकारान्त, उकारान्त पुल्लिंग श्रथवा खलिंग शब्दों में क्रम से संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'उसि = अस' और 'भ्यस्' के स्थान पर प्राकृत में सूत्र संख्या ३८ से प्राप्तस्य प्रत्यय 'तो, दो, दु, हि हिन्तो और ३-६ से 'तो, दो, दु, हि, हिन्तो, सुन्तों' में से 'ह' प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होती है। उदाहरण इस प्रकार है: - मालायाः = मालाओ, मालाउ मालाहिती = साला से; इत्यादि । मालाभ्या=मालाहिन्तो, मालासुम्तो = मालाओं से; इत्यादि । अग्निम् श्रीहिन्तो श्रग्नियों से; इत्यादि । श्रस्ते अशीओ अग्नि से; इत्यादि ।
'माहित' और मालासुन्तो रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१२४ में की गई है।
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अग्निभ्यः संस्कृत पञ्चमी बहुवचनान्त पुंलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप अोहिन्तो होता है । इसमें सूत्र संख्या २७८ से मूल शब्द 'अग्नि' में स्थित 'न्' व्यञ्जन का लोप २०८६ से लोप हुए 'न्' व्यञ्जन के पश्चात् शेष रहे हुए 'ग' को द्वित्व 'गंगू' की प्राप्तिः ३-१६ से प्राप्त रूप 'रिंग में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' के आगे पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय का भाव होने से दीघं स्वर 'ई' की प्राप्ति और ३-६ से तथा ३-५६४ के निर्देश से प्राप्त रूप अग्गो में पञ्चमी विभक्ति के प्राकृत में 'हिन्तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अग्गीहिन्तो रूप सिद्ध हो जाता है ।
बहुवचन
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'मालाओ' 'मालाउ' और 'मालाहिती' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-११४ में की गई है। अगीओ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१२५ में की गई है । ।। १२७ ।।
दहिम्मि | मम्मि ||
ङ ः || ३- १२८ ॥
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श्राकारान्तादिभ्यो दन्तवत् प्राप्तो
ङर्डे न भवति || अग्मिम्मि । वाउम्मि ।
अर्थः- प्र - प्राकृत भाषा के सप्तमी विभक्ति के एकवचन में सूत्र संख्या ३-११ के अनुसार अकारान्त शब्दों में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'डिन्छ' के स्थान पर प्राकृत में प्राप्त होने वाले 'डे=ए' की प्राप्ति आकारान्त कारान्त, उकारान्त शब्दों में नहीं हुआ करती है। इन आकारान्तादि शब्दों में सूत्र संख्या ३-१२४ के निर्देश से केवल एक प्रत्यय 'म्मि' की ही सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्रामि होती है । उदाहरण इस प्रकार है- अनी अम्मि अग्नि में; वायौ वाम्मि; दनि अथवा दनि= दहिम्म= दही में और मधुनि=महुम्मि=मधु में; इत्यादि ।