________________
[ २१४ ]
* प्रियोदय हिन्ही व्याख्या सहित * +++++++++rohtos.sonorarist.caci.000000rn.windorostatest+kroin
'पहुँ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या -३६ में की गई है।
ग्रामण्यम् संस्कृत द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त विशेषणात्मक पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप गामणि होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-६ से मूल संस्कृत रूप ग्रामणी में स्थित 'ए व्यञ्जन का लोप; ३-४३ से प्राप्त रू. में नि:: .. दीइसाब 'ई' के गाल पर ह्रस्व स्वर 'इ' को प्राप्ति; ३-३ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में प्राकृत में 'म् प्रत्यय को प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकनीय रूप गामाण सिद्ध हो जाता है।
खलप्पम संस्कृत द्वितीया विभक्ति का एकवचनान्त विशेषणात्मक पुस्लिग रूप है। इसका प्राकृस रूप खलपु होता है इसमें सूत्र संख्या ३-४३ से मूल रूप खलपू में स्थित अन्त्य दीर्घ स्वर 'ऊ के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'धु' की प्राप्रि; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के पकवचन में प्राकृत में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२ से प्रारत प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार को प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप खलघु सित हो जाता है।
'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि मत्र-संख्या १-२३ में की गई है।
हाहा संस्कृत तृतीया विभक्ति का एकवचनान्त पुल्निग का है । इसका प्राकृत रूप हाहाण होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३.६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय '
टाया ' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप हाहाण सिद्ध हो जाता है।
'कर्य' क्रियापद रूप की मिद्धि नत्र-मंख्या १-१६ में की गई है।
मालानाम् संस्कृत षष्ठी विभक्ति का बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है । इसका प्राकृत रूप मालाण होता है इसमें मूत्र-संख्या ३६ से षष्ठी विर्भात के बहुवचन में संस्कृतीय प्रामध्य प्रत्यय 'श्राम' (नाम) के स्थान पर प्राकृन में 'श' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतोय कप मालाण सिद्ध हो जाना है।
गिरीणाम् संस्कृत षष्ठी विकि का यह वचनान्त पुल्लिंग रूप है। इसका प्राकृत रुप गिरीण होता है। इसमें सूत्र संख्या ३ १२ से मूल प्राकृत शब्द गिरि में स्थित अन्त्य इव स्वर 'इ' के धागे षष्ठो बहुवचनात्मक प्रत्यय का सद्भाव होने से दीघ स्वर 'ई' को प्राप्ति और ३.६ से प्राप्त रूप गिरि में पटो विभक्ति के बहुवचनार्थ में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय 'आम् = गाम्' के स्थान पर प्राकृत 'ए' प्रत्यय की प्रानि होकर गिरीण रूप सिद्ध हो जाता है।
गुरूणाम् संस्कृत पठी विभक्त का बहुवचनान्त पुल्लिग रूप है । इसका प्राकृत रूप गुरूण होता है । इसमें भी उपरोक्त गिरीण रूप के समान ही सूत्र-संखका ३-१२ और ३.६ से कम से अन्त्य हाच स्वर को दोपता की प्राप्ति एवं पर्ण बहुवचनार्थ में प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर गुरूण क्य मिद्ध हो जाता है।