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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * -tourisaook000000ksridrosorroreoverintenderstandsonsentences. में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ग्राम' के स्थान पर प्राकृत में 'हं' प्रत्यय को आदेश-प्राप्ति होकर 'नवण्ह' रूप सिद्ध हो जाता है।
दशानाम् मस्कत षष्ठी बहुवचनान्न संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) म.प है । इसका प्राकृत रूप दस होता है । इसमें सूत्र संस्था १.२६. से 'श के स्थान पर 'स' की प्राप्तिः ५-८५ से प्रथम दाघ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति श्री ३.१.३ से षष्ठी विभक्ति के बहुववन में संस्कनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ग्राम' के स्थान पर प्राकृत में पह' प्रत्यय की आदेश-प्रारित होकर 'दसण्ह' रूप सिद्ध हो जाता है।
पञ्चदशानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसका प्राकृत रूप पण्णरसहं होता है। इममें सूत्र-संख्या -४३ से संयुक्त व्यञ्जन 'च' के स्थान पर 'ण' वणं की आदेश-प्राप्ति; २-८६ से श्रादेश प्राप्त 'ग' को द्वित्व ज्य' को प्राप्ति; १.२५६ से 'द' वण के स्थान पर र वर्ण को आदेश प्राप्तिा १-२६. से 'श' स्थान पर स्' को प्रभाग १-४ ले प्रथम वाच स्वर 'श्रा के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति और ३-१२३ से षष्ठो विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तब्य प्रत्यय 'अाम् के स्थानीय रूप 'नाम्' के स्थान पर 'एहँ प्रत्यय को आदेश-प्ति होकर 'पपणरसपह' हा सिद्ध हो जाता है ।
दिवसानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त कए है। इसका प्राकृत प दिवसारणं हाना है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१२ से मूल संस्कृत के समान ही प्राकृतीय अंग रूप दिनम' में स्थित अन्त्य हस्वस्वर 'अ' के स्थान पर 'धागे षष्ठी बहुवचन बोधक प्रत्यय का मात्र होने से' 'आ' की प्राप्ति; ३.६ से फठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तब्य प्रत्यय 'श्राम के स्थानीय रूप 'नाम' के स्थान पर प्राकृन में 'ण प्रत्यय की श्रादेश प्राप्त और १-२७ से आनेश-प्राप्त प्रत्यय 'ण' के अन्त में आगम रूप 'अनुस्वार' की प्राप्ति होसर दिवसाणं रूप सिद्ध हो जाता है।
अष्टादशानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक विशेषण रूप है ! इसका प्राकृत रूप अट्ठाग्मराह होता है । इसमें सूत्र संख्या २.३४ से संयुक ब्यञ्जन 'ष्ट्र के स्थान पर प्राकृत में '४' को प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त ४ को द्वित्व 'ल' की प्राप्रि; २.९० से प्राप्त पूर्व के स्थान की प्राति; १.२.१६ से 'द' के स्थान पर 'र' का श्रादेश-प्राप्ति; १-२६. से 'शा' के स्थान पर 'सा' की प्रानि, १.८४ से प्रात 'मा' में स्थित दीर्घ स्वर 'या' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्रान और ३१२३ में प्राain अलारस में षा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम' के स्थानीय रूप 'नाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'रई' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप 'अद्वारसण्ह' सिद्ध हो जाता है।
श्रमण-साहलीणाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप समण साहसाण होना है। इसमें सूत्र संख्या २.५ से 'x' में स्थित 'र' का लोप; १-२६० से लीप; हुए 'र' के पश्चात