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* प्राकृत व्याकरण *
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चतुर्णाम सस्कृत पठी बहुवचनान्त संख्यात्मक मर्वनाम { और विशेषण ) रूप है। इसके प्राकुन रूप 'चउण्ह' और घाउण्डं होते हैं। इनमे सूत्र-संख्ण १-१७७ से 'त' का लोप; २.७६ से 'र' का लाप और ३-१२३ से प्रारं 'च' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'श्राम्' के स्थान पर प्राकृन में ' और 'हं' प्रत्ययों को कम से आदेश-प्राप्ति होकर दोनों रूप 'वउण्ह' और 'चउण्ह' सिद्ध हो जाते हैं।
पञ्चानाम् संस्कृत षष्टी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप पञ्चह और पञ्चहं होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या ३-१२३ से संस्कृत के समान ही प्राकृतीय अंग रू। 'पत्र' में पठी विभाक्त के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम' के स्थान पर पाकृत में 'ह'
और 'राई' प्रत्ययों की क्रम से श्रादेश-प्रालि होकर दोनों रूप 'पञ्चह' और पञ्षण् है' सिख हो जाते हैं।
पपणाम संस्कृत पश्वी बहुवचनान्ट संख्यात्मक भर्घनाम (और विशेषण) रूप है । इसके प्राकृत स्य '' और 'अहं हात है । इनमे सूत्र-सख्या १.२६५ से मुल संस्कृत शब्द 'घट में स्थित 'ष' व्यजन के स्थान पर प्राकृत में 'छ' व्यजन की प्रादेशःप्रामि; १.११ से (अथवा २.७७ से) अन्त्य हलन्त व्यन्जन 'ट' का लोप और ३.१२३ से प्राप्तांग 'छ' में षष्टी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ग्राम' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' और 'गहुँ' प्रत्ययों का कम से आदेश-प्राप्ति होकर दोनों रूप 'छाह' और 'छ' सिद्ध हो जाते हैं।
सप्नानास संस्कृन पष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है । इसके प्राकन सप 'मत्त' और 'मत्त होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या २-७७ से मूल संस्कृत शब्द 'सर' में स्थित हलन्त 'प' का लोप; २.८६ स लोप हुए 'प' के पश्चात् शेष रहे हुए 'त' को द्वित्व 'त' की प्राप्ति और ३.१२३ से प्राप्तांग 'मस' में पविभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'श्राम' के स्थान पर प्राकृन में गह' और 'राह' प्रत्ययों का क्रम से आदेश-प्राप्ति होकर दोनों रूप सत्तण्ह' और 'सत्ताह' सिद्ध हो जाते हैं।
अष्टानाम संस्कृत षष्ठी बहु पचताम्त संख्यात्मक मर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत कर अटुह और अटुण्डू होते हैं। इसमें सूत्र-संख्या २-३४ से मूल संस्कृत शब्द 'अ' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन '' के स्थान पर 3 की प्राप्ति; २-६ से प्राप्त 'ठ' को द्वित्व 'ठ' की प्राप्ति, २-६० से प्राप्त पूर्व 'ड' के स्थान पर 'द' की प्राप्ति और ३-१२५ से प्राप्तांग 'पटु' में षष्ठी बिभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'श्राम' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'ह' और 'हे' प्रत्ययों का आदेश-प्राप्ति होकर दोनों रूप 'अट्ठण्ह' और 'अट्टह सिद्ध हो जाते हैं ।
भयानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है । इसका प्राकृत रूप 'नवम्हं होता है । इसमें सूब संख्या ३-५५३ से मूल संस्कृत के समान ही प्राकतीय अंग रूप 'न'