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* प्राकृत व्याकरा * **6000000
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उदाहरण उपरोक्त सूत्रों में यथावसर रूप से प्रदर्शित कर दिये गये हैं; अतः यहाँ पर उनको ना करने की आवश्यकता नहीं रह जाती हैं, इस प्रकार वृत्ति और सूत्र का ऐसा तात्पर्य है । ३-१०४ ।। हयं सिना ।। ३-१०५ ।।
अस्मदो म्म अम्मि अम्हि हं
हं
मदः सिना सह एते पडादेशा भवन्ति । अज्ज म्मि हासिया मामि ते ।। उन्नम अम्म कुवि । अहि करंभि । जेण हं विद्धा । किं श्रहं । अयं कयपणासो ||
अर्थः - संस्कृत मर्वनाम शवर 'अस्मद्' के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'हम' के स्थान पर प्राकृन में ( प्रत्यय माहेत मूल श के स्थान पर ) क्रम से ( तथा वैकल्पिक रूप से ) छह रूपों का आदेश-प्राप्ति हुआ करती है। वे श प्राप्त छह रूप इस प्रकार हैं: - ( अस्मद् + मि ) श्रहम् = 'मि, अम्म, अहि, हं, अह और अयं अर्थात मैं । इन श्रादेश प्राप्त छह रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं - अहम् हासिता हे सखि ! तेन=अज्जम्भ हासिया मामि तेण श्रर्थात् हे सखि । आज मैं उससे हवाई गई याने उपने आज मुझे हँसाया | यहां पर 'अहम्' के प्राकृत रूपान्तर में 'म्मि' का प्रयोग किया गया है। यह प्रयोग प्रेरणार्थक भाव है। उम् शिविया अर्थात् उठ बैठो ! ( याने अनुनयविनय-प्रणाम आदि मत करो; क्योंकि ) मैं ( तुम्हारे पर ) कोवित (गुरुसेवाली ) नहीं हूं। यहां पर 'अहम् के स्थान पर प्राकृत में 'अस्मि रूप का प्रदर्शन कराया गया है।
करोमि = मैं करता हूँ अथवा मैं करती हूँ ।
अहम् करोमि = येन अहम् वृद्धा=जेग हूं विद्वा=जिम (कारण) से मैं वृद्ध हूँ ।
किम प्रोऽस्मि (प्रमृष्टः अस्मि) अहम् = किं पटुम् अहं अर्थात् क्या मैं भूला हुआ हूं याने मैं भूल गया हूं ।
क्या
अहम् कृत-प्रणामः = अहयं कय पणामो अर्थात मैं कृत-प्रणाम (याने कर लिया है प्रणाम जिसने ऐसा हूँ। उपरोक्त वह उदाहरणों में संस्कृतोय रूप 'अम्मू ( मैं ) के आदेश प्राप्त छह माकृतीय रूपों का दिग्दर्शन कराया गया है।
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'अज्ज' अव्यय रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-३३ में की गई है ।
अहम्' संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप हैं। इसका प्राकृत रूप 'म्मि' होता हैं। इसमें सूत्र-संख्या ३-१०५ से 'अहम्' के स्थान पर 'म्मि' आदेश प्राप्ति होकर 'म्मि' रूप सिद्ध हो जाता है ।
'हाfear संस्कृत प्रेरणार्थक तद्धित विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप हासिया होता है ।