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* प्राकृत व्याकरण *
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त्रयाणाम् संस्कृत पष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम ( और विशेषण ) रूप है। इसका प्राकृत रूप तियहं होता है। इस सूत्र संख्या ३-११८ से मूल संस्कृत शब्द 'त्रि' के स्थान पर प्राकृत 'तो' अंग रूप की आदेश प्राप्ति ६-१२३ से पष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्ताग 'ती' में संस्कृतीय प्राप्तस्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'यह' प्रत्यय का आदेश और १-८४ से प्राप्त प्रत्यय 'ए' संयुक्त व्यञ्जनात्मक होने से अंग रूप 'ती' में स्थित अन्त्य दीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'इ' की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप 'सिहं' सिद्ध हो जाता है ।
'ध' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-५० में की गई है।
त्रिg संस्कृत सप्तमी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम ( और विशेषण ) रूप है । इसका प्रकृत रूप ती होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-११८ से मूत्र संस्कृत शब्द 'त्रि' के स्थान पर प्राकृत में 'ती' अंग रूप की प्रदेश प्राप्ति और ४-४४८ से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तांग 'ती' में संस्कृनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सुप्=सु' के समान हो प्राकृत में भो 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप तीसु सिद्ध हो जाता है ।
'टिभ' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१६ में की गई है । ३-६८ ॥
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ह्र द वे ॥ ३-११६ ॥
द्वि शब्दस्य तृतीयादौं दो में हत्यादेशौ भवतः । दोहि वेहि कयं । दोहिन्तो वेहिन्तो आमची दोराहं वेराई धणं । दोसु वेसु विचं ।
अर्थ :- संस्कृत संख्या वाचक शब्द 'द्वि' अर्थात 'दो' नित्य प्राकृत में ( न कि संस्कृत में ) बहुवचनात्मक है; इस 'द्वि' शब्द के एकवचन में रूपों का निर्माण नहीं होता है; क्योंकि यह 'द्वि' शब्द उस संख्या का वाचक है; जो कि नित्य ही 'एक' से अधिक हैं। तृतीया विभक्ति पंचमी विभक्ति, षष्ठी विभक्ति और सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में क्रम से प्रत्ययों की संप्राप्ति होने पर इस संस्कृत शब्द 'द्वि' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'दो' और '' अंग रूपों की आदेश प्राप्ति होती है; तत्पश्चात् प्राकृतीय इन दोनों प्राप्तांगों में बाने 'दो' और 'वे' में क्रम से उक्त विभक्तियों के बहुवचन बोधक प्रत्ययों की संयोजना की जाती है। उदाहरण इस प्रकार हैं: - तृतीया विभक्ति बहुवचनः --- द्वाभ्याम् कृतम्-हि reat are sir दो से किया गया है। पंचमी बहुवचनः--- द्वाभ्याम् आगतः रोहिन्तो अथवा बेहिन्तो गम अर्थात दो [ के पास ) से आया हुआ है। षष्ठी बहुवचनः - द्वयोः धनम् दोहं अथवा अर्थात दोनों का धन और सप्तमी बहुवचनः - द्वयोः स्थितम् दोस अथवा वेसु ठिक अर्थात् दानों पर स्थित है।