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* प्रियादय हिन्दी व्याख्या सहित
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इसमें सूत्र-संख्या ३-१४२ और ३-१५३ से मूल संस्कृत धातु के समान ही प्राकृती हलन्त धातु 'हंस' में स्थित आदि 'अ' को प्रेरणार्थक अवस्था होने से 'आ' की प्राप्तिः ४-२३६ से प्राप्त हल प्रेरणार्थक धातु 'हास' में विकरण प्रत्यया' की प्राप्ति ३-१५६ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर आगे 'क्त' वाचक प्रत्यय का सद्द्माव होने से 'इ' की प्रामि ४-४४% से प्राप्तांग प्रेरणार्थक रूप 'हासि' में संस्कृत के समान ही प्राकृत म भी भूत कृदन्त वाचक 'क्त' प्रत्यय सूचक 'ल' की संतपय 'व' में स्थित हलन्त 'त' का लोप और ३-३२ एवं २४ के निर्देश से प्राप्त रूप 'हासिल' को पुल्लिंगत्त्र से स्त्रीलिंगत्व के निर्माण हेतु स्त्रीलिंग सूचक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति एवं १-५ से पूर्व प्राप्त 'हामित्र' में प्राप्त स्त्रीलिंग अर्थक 'धा' प्रत्यय की सन्धि होकर हासिभा रूप सिद्ध हो जाता है ।"
'मामि' 'अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या १-१९५ में की गई है।
'तण' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १३ में की गई है ।
उम्मम संस्कृत आज्ञार्थक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी उन्नम ही होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२३६ में मूल प्राकृत हलन्त धातु 'उन्नम' में त्रिकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३-१७५ से आज्ञार्थक लकार में द्वितीय पुरुष के एक वचन में 'लुक' रूप अर्थात प्राप्तव्य प्रत्यय की लोपावस्था प्राप्त होकर 'उन्नम' क्रियापद की सिद्धि हो जाती है ।
'न' अव्यय रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १.६ में की गई है ।
'अहम्' संस्कृत प्रथमां एक वचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनामरूप है। इसका प्राकृत रूप 'अम्' होता है। इसमें सत्र संख्या ३ १०५ से 'अहम्' के स्थान पर 'अम्मि' रूप की आदेश पारित होकर 'अम्मि' रूप सिद्ध हो जाता है ।
fear संस्कृत
विशेषणात्मक स्त्रीलिंग रूप है। इस का प्राकृत रूप 'कुविआ' होता है । इसमे सूत्र संख्या १-२३१ से मूल संस्कृत धातु 'कुप' में स्थित 'प' के स्थान पर 'व' को प्राप्तिः ४.२३६ से प्राप्त हलन्त धातु 'कुष' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति ३-९४६ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के 'आगे भूत कृदन्त नामक 'तत' प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'इ' की प्राप्ति; ४-४४८ से भूतकृदन्त अर्थ में संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी 'तन्त' प्रत्यय की प्राप्तिः १-१७७ से प्राप्त प्रत्यय 'त' में से 'हलन्त त' का लोप ३२ एवं २-४ के निर्देश से प्राप्त रूप 'कुविश्र' को पुल्लिंगत्व से स्त्रीलिंग के निर्माण हेतु स्त्रीलिंग-सूचक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और १-५ से पूर्व प्राप्त 'कुवित्र' में प्राप्त स्त्रीलिंग अर्थक 'आ' प्रत्यय की संधि होकर कुवि रूप सिद्ध हो जाता है ।
'अहम्' संस्कृत प्रथमाएक वचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप 'अहि होता हैं | इसमें सूत्र-संख्या ३- १०५ से 'अहम्' के स्थान पर 'अहि' रूप की देश-प्राप्ति होकर 'जन्हि' रूप सिद्ध हो जाता है ।