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* प्रियादय हिन्दी व्याख्या सहित *
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अम्ह अम्हे अम्हो मो वयं में जसा ॥ ३-१०६ ॥ अस्मदो जमा सह एते पडादेशा गवन्ति ॥ अम्ह अम्हे अम्हो मो वयं भे भणामो।
अर्थ:- संस्कृत सधनाम शब्द 'अस्मद' के प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय जम' की संयोज नाम पर 'मूल शहद और प्रत्यय दोनों के स्थान पर श्रादेश-प्राप्त संस्कृत रूप 'वयम्' के स्थान पर प्राकृन में कम से छह रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे छह रुप कम से इप्स प्रकार है:--(वयम्=) श्रमह, यम्हे, अम्हो, मो, वयं और भे । उदाहरण इस प्रकार है:--अयम भणामः = श्रम्ह, अ.. अहो, मो. वयं भे भणामो अर्थात म अध्ययन करते हैं !.
'वयम्' संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त त्रिलिंगात्मक मषनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप अम्ह, अाहे. अहो, मो, जथं और भे होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ५-१०६ से मूल भन्फत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के प्रथमा बहुवचन मे सम्पतीय प्राप्तध्य प्रत्यय 'जम्' की संप्राप्ति होने पर प्राक्ष रूप 'वयम्' के स्थान पर . प्राकृत में उक्त छह रूपों की कम से प्रदेश iin होकर नम से छह रूप 'अम्ह, अम्हे, अहो, मी, सय और भे" सिद्ध हो जाते हैं।
भणामः संस्कृत क्रियापद रूप है । इसका प्राकृत रूप भणामो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३६ से प्राकृत हलन्त पातु भण' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५५ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति और ३-१४४ से वर्तमान काल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'म:' के स्थान पर प्राकृत में 'मी' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'भणामो' रूप सिद्ध होजाता है । ३-१०६ ।। णे णं मि अम्मि अम्ह मम्ह मं ममं मिमं अहं अमा ॥३-१०७ ॥
अस्मदोमा सह एते दशादेशा भवन्ति ॥णे णं मि अम्मि श्रम्ह मम्ह मं ममं मिम अहं पेच्छ ।
अर्थ:-- संस्कृत सर्वनाम शब्न 'अस्मद' के द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'श्रम' को संबोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर अामेश-प्राम संस्कृत रूप 'माम्' अश्रवा मा के स्थान पर प्राकृत में क्रम में इस रूपों की आदेश-प्रालि छुया करती हैं। वे दस रूप कम से इस प्रकार है:-- (माम) णे, पं. मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, में, मम, मिमं, और अहं । बदाहरण इस प्रकार है:-माम पश्य = पोरग, मि, अम्मि,त्रम्ह, मम्ह, में, मम, मिमं अहं पेच्छ अर्थान् मुझे देखो।
माम् अधधा मा संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप 'णे, णं, मि, अम्मि, अह, मम्ह, में, मम, मिमं, और अहं होते हैं । इनमें सूत्र संख्या ३-१४७ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मदु' के द्वितीया विभक्त के एकवचन में संस्कृतीय प्रासम्म प्रत्यय 'म्' की