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*प्राकृत व्याकरण 00000000000000w.rrmirenderstoorearrrrrrrrrrrrrorosconst000+000.
उपरोक्त विभक्तियों में इन वर्णित रूपों के अतिरिक्त अन्य रूपों का सदभाव 'गुरु' श्रादि उकारान्त शब्दों के रूपों के समान ही जानना चाहिये ।
स्त्रीलिंग में 'म' सर्वनाम शब्द के रूप 'वहू' आदि दीर्घ अकारान्न शब्दों के रूपों के ममान हो समझ लेना चाहिये ।
'अम' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-८७ में की गई है। 'पुरिसो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४२ में की गई है।
अमी संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त पुल्लिग विशेषण ( और मर्वनाम ) रूप है । इसका प्राकन रूप अमुणो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'अदप्त में स्थित अन्त्य हलन्त ध्यञ्जन म्' का लोप; ३-८ स '६' के स्थान पर 'मु व्यजने की मादश-प्राप्ति और ३.२२ से प्राप्तांग 'प्रमु' में प्रथमा विभक्ति के बहुववन में ( उकारान्त पुल्लिा में ) संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस' के स्थान पर प्राकृत में 'गो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अमुणों रूप सिद्ध हो जाता है।
'पुरिसा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या P-POP में की गई है। 'अ ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-८७ में की गई है। 'वणं' रूप की सिद्धि मूत्र-संख्या १-१७ में की गई है।
अमूनि संस्कृत प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्त नमक लिग विशेषण ( और मबनाम ) रूप है। इसके प्राकृत रूप अमई और अमणि होते हैं । इनमें 'अमु अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त विधिअनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-२६ से प्राप्तांग 'अमु' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को द्वाघ स्वर'' की प्राप्ति कराते हुए कम से 'इ' और 'M' प्रत्यय की प्रथम द्वितीया बहुवचन में पत्र नपुसक लिंगार्थ में प्राप्ति होकर कर से दोनों रूम असई और अनगि सिद्ध हो जाते है।
बनानि संस्कृत प्रश्रमा-द्वितीया बहुवचनान्त संज्ञा रूप है। इसका प्राकृत रूप वणाणि होता है। इसमें सब-संख्या १.२२८ से मूल संस्कृत शब्द 'वन में स्थित 'न' के स्थान पर 'ग' की प्रानि और ३.२६ से प्रातांग 'वण' में स्थित अन्य स्त्रर 'श्र' को दो वर 'या' की प्रारित कराते हुए नपुसक लिंगार्थ में प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन में प्राकृत में 'fण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वाणि रूम सिद्ध हो जाता है।
असौ संस्कृत प्रथमा एकवचमान्त स्त्रीलिंग विशेषण (और मर्वनाम ) रूप है। इसका प्राकृत रूप अमू होता है। इसमें प्रमु' अंग रूप की प्राप्ति नपरोक्त विधि-अनुमार; तत्पश्चात सुत्र संख्या ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में स्त्रीलिंग में उकारान्त में संस्कृतीय प्राप्नव्य प्रस्थय 'लि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य हुत्व स्वर '3' को दोघं स्वर '' की प्राप्ति होकर असू रूप सिद्ध हो जाता है।