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प्राकृत व्याकरण * +0000000000000000000rnoornsrc0000000orrors+000rKarter064004446660000000** उक्त श्रादेश प्राप्त प्रथम अग 'तुम' में स्थित 'म' अश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'मह'
और 'उझ अंश रूप को प्राप्ति हुश्रा करती है, तदनुसार उक्त चार अंग रूपों के अतिरिक्त दो श्रग रूपों की प्राप्ति और होती है; जो कि इस प्रकार है:--'तुम्ह' और 'तुझ' । यो पंचमी बहुवचन के प्रत्ययों के संयोजनार्य कुला , भरूप की प्राप्ति होता है । पंचमी बहुवचन में 'भ्यस्' प्रत्यय के स्थान पर 'सो' दो-ओ, शुज, हि, हिन्तो और सुन्तो यों छह प्रत्ययों की आदेश-प्राप्ति का विधान है । ये छह ही प्रत्यय कम से वक्त छह अंगों में से प्रत्येक अंग में संयोजित होते हैं। तदनुमार पंचमी बहुवचन में संस्कृतीय रूप 'युधात्' के प्राकृतीय रूप छत्तोस होते हैं। उदाहरण इम प्रकार हैं:
तो-प्रत्यय-तुम्मतो, तुम्हसो. उरहत्ती, उम्हत्तो. तुम्हती, तुकत्ती । प्रो-प्रत्यय-तुभाश्री, तुम्हाओ, खय्याही, जम्हात्रो, तुम्हाओ, तुझाश्री ।
उ-प्रत्यय - तुभाउ नुय्याहु. उपहाड, उम्हाउ, तुम्हाउ, तुकाल, । यो शेष प्रत्यय 'हि-हिन्तो और सुन्ता' की योजना करके स्वयमेव समझ लेना चाहिये।
युष्मत संस्कृत पञ्चमी बहुवचनान्त त्रिनिगात्मक सर्वनाम रूप है। इस प्राकृत कम-तुम्भतो, तुम्हत्ता, उरहत्तो, उम्हत्तो, तुम्हसो और तुकत्ता होने हैं। इनमें से प्रथR बार रूम में सूत्र संख्या ३.६८ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद' के स्थान पर प्राकृत में चार अंग रूप 'सुभ -तुर:-उन्ह-उन्ह' का आदेशप्रानि शेष दो रूपों में सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से पूर्वोक्त प्रा प्रथम अंग तुम्भ' में स्थित 'डम' श्र' के स्थान पर क्रम से 'मह और अझ की प्रानि होने से उक्त पचम और षष्ठ अंग रूप की प्राप्ति; तत्पश्चात सूत्र-संख्या ६-६ सं जमत पातांग छहों में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रामण्य प्रत्यय 'भ्यास के स्थान पर प्राकृत में प्रादेश प्राप्त प्रत्यय 'सो, प्रो. 'उ, हि, हिन्तो, सुन्तो' में से प्रथम प्रत्यय 'तो' की प्रानि होकर उक्त छह ही प्राकृत रूप तुमसो. तुम्हत्तो, उहतो, उम्हत्ता, तुम्हत्तो और तुज्रनो' मिद्ध हो जाता है। ३-६८ ।। भइ-तु-ने-तुम्हं, तुह-तुह-तुब-तुम-तुमे--तुमो-तुमाइ-दि
दे-इ-ए-तुब्भोभोव्हा उसा ॥ ३-६६ ॥ युप्पदो मा षष्ठयेक वचनेनसहितस्स एते अष्टादशादेशा भवन्ति ॥ तह । तु । ते तुम्हें । तुह । तुई । तुव । तुम ! तुमे । तुमी । तुमाइ । दि । दे । इ । ए। तुष्भ । उन्म । उह धर्ण । मी म्ह-ज्झो वेति वचनात् तुम्ह । तुज्झ । उम्ह । उज्झ । एवं च द्वाविंशति रूपाणि ।
अर्थः----संस्कृन सर्वनाम शरद 'युष्मद् के षष्ठी विभक्ति के पकवचन में संस्कृतीय प्रामस्य प्रत्यय 'रुस अस' की संयोजना होने पर प्रान संस्कृतीय रूप 'नव' अथवा ते के प्राकृत मपान्तर में संपूर्ण उक्त 'सर' अथवा ते रूप के स्थान पर क्रम से अठारह रूपों को श्रादेश प्राप्ति हुआ करती है । उदाहरण