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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[१५] 1000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000.
त्वयि' संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त त्रिलिंगात्मक सर्वनाम है । इसके प्राकृत में पांच रूम होते हैं । तुमे, तुमय, तुमाइ, नई और तग; इनमें सूत्र संख्या ३.६०१ से संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' में सप्रमो परचने में संस्कृतीय प्रातल्या प्रत्यय हि-इ' की मयोजना होने पर पाम रूप त्वयि' के स्थान पर उक्त पाँचों of की क्रम में श्रादेश-प्राति होकर क्रन सं थे पाँवों रूप तुझे, तुमर, तुमइ, तइ और तए' सिद्ध हो जाते हैं।
'ठिों रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१६ में की गई है । ३.१०१ ।।।
तु-तुव-तुम-तुह-तुब्भा छौं । ३.१०२ ।।
युष्मदी डौ परत एते दिशा भवन्ति । उस्तु यथा प्राप्तमेव ।। तुम्मि । तुबम्मि । तुमम्मि । तुम्मि । तुमम्मि । ब्भो म्ह-ज्झौ वेति वचनात् तुम्हम्मि ! तुज्झम्मि । इत्यादि ॥
अर्थ:--संस्कृत सर्वनाम शब्द "युष्मद्" के प्राकृत रूपान्तर में सामी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रामव्य प्रत्यय "डे,इ" के प्राकृतीय स्थानीय प्रत्यय "म्मि' (और "डे-ए") प्रत्यय प्राप्त होने पर “युष्मद" के स्थान पर प्राकत में पाँच अंग रूपों को क्रम से मि होनी है, जो कि इस प्रकार हैं:युष्मद-तु, तुत्र, तुम, तुई. और तुम्भ । उदाहरण यों हैं:.-'वयि' = तुम्मि, तुम्मि, तुमम्मि तुहम्मि और तुर्भाम्म | सूत्र संख्या ३.१०५ के विधान से उपरोक्त पश्चम अंग रूप 'तुम' में स्थित 'दम' अंश के स्थान पर कम से तथा वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'a' अंश रूप की प्रापि हुना करती है; तदनुमार दो
और अंग रूपों की इस प्रकार प्रानि होती है:-'तुम्ह' और 'तुम'। ऐसी स्थिति में 'म्मि' प्रत्यय की संयोजना होने पर दो और रूपों का निर्माण होना है:--तुम्हम्मि और तुज्झम्मि।
वृत्ति में 'इत्यादि' शब्द का उल्लेख किया हुआ है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि अपरोक्त प्राप्त सात अंगों में से प्रथम अंग के अतिरिक्त शेष छह अंग रूपों में सूत्र-संख्या ३.११ के विधान से संस्कृतीय प्रत्यय 'डि =इ' के स्थान पर 'डे = ए' प्रत्यय को संयोजना भी होना चाहिये; लरनुसार छह रूपों की प्राप्ति की संभावना होती है; जो कि इस प्रकार है:-तुवे, तुमे, तुहे तुझे, तुम्हे और तुज्झे; यो वृति के अन्त में उल्लिखित 'इत्यादि' शब्द के संकेत से प्रमाणित होता है।
स्वयि संस्कृत सप्तम। एकवचनान्त त्रिलिंगामक सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत तुम्मि, तुबम्मि, तुमम्मि, तुम्मि, तुम्मि , तुम्हम्मि और तुजम्मि होते हैं। इनमें से प्रथम पांच रूपों में सूत्र-संख्या ३.१०२ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद' के स्थान पर क्रम से पांच अंग रूपों की प्राग्नि और छ8 तथा सातवें रूप में सूत्र-संख्या ३-३०४ से पूर्व में प्राप्तांग पांचवें तुम्भ' में स्थित 'लभ' अंश के स्थान पर क्रम से तथा
कल्पिक रूप से 'मह' और 'म' अश की प्रामि; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-११ से उपरोक्त रीति से सासों प्राप्तांगों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रामध्य प्रत्यय 'कि-इ' के स्थान पर प्राकृत में