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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[१८३ । morrorosorrowroomssesterestowsrooriossessmootoosteoretorstretortoon इस प्रकार है: . तव ( अथवा ते ) धनम् = तइ-तु-ने-तुमई-तुह-तुई-तुष-तुम-तुमे-तुमो-तुमाइ-दि-वे... ६-ए-तुभ-उभ-उमाधम अर्थात तेग धन । सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से वक्तपास अठारह रूपों में से सोलह और सतरहवें रूपों में स्थित 'लभ' अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'हम की प्राप्नि क्रम में हुआ करती है। तदनुसार संस्कृत रूप 'तर' के स्थान पर चार रूपों की और भादेशप्राप्ति कम से तथा वैकल्पिक रूप से हुआ करती है; ओ कि इस प्रकार है:-( तब) तुम्ह, तुझ, सम्र
और उम । यो संस्कृत शब्द 'युष्मद्' के षष्ठी एकवचन में प्राप्त रूप 'तव' ( अथवा दे ) के स्थान पर मान में कुल बाइम कपों को बादेश-प्रानि कम से जानना चाहिये।
'तष यथा 'ने' संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त (बिलिंगात्मक ) सर्वनाम रूप हैं। इसके प्राकृत रू.५ (२.) होते हैं:-तई, तु, ते, तुरहं, तुह, नुह, तुव, तुम, तुमे, तुमो, तुभाइ, दि. दे, इ, ए, तुभ, उद्यम, जगह, तुम्ह, तुज्मा, उम्ह और रझि । इनमें से प्रथम अठारह रूपों में सूत्र-संख्या ३.६६ से संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के षमो विभक्ति के प्रवचन में प्राप्तव्य प्रश्यय 'कस् = अस' को संयोजना होने पर प्राप्त कप 'तव' अथवा 'ते' के स्थान पर उक्त प्रथम अटोगह रूपरों को आदेश-प्राप्ति होकर प्रथम अठारह रूप 'तर, तुं. ते, तम्ह तुह, तुह, तुष, तुम, तृमे, तुमी, तुमान: दि.३, इ, ए, तुम्भ, उच्भ और उरह सिद्ध हो जाते है।
शेष १६ में से २२नक के चार रूपों में सूत्र-संस्वा ३-१०४ के विधान से उक्त सोलहवें और मतरह रूप में स्थित भ' अंश के स्थान पर कम से तथा वैकल्पिक रूप से 'मह' और 'जम' अंश को श्रादेश प्राप्ति हो कर उक्त शेष चार रूप 'तुम्ह, तुज्झ, उम्ह और उज्म भी सिद्ध हो जाते हैं।
'धणे' रूप का सिद्ध सूत्र संख्या ३.५० में की गई है। ३-६६ ।। तु वो भे तुम्भं तुम्भाश तुवाण तुमाण तुहाण उन्हाण आमा ॥३-१०॥
- युष्मद थामा महितस्य एते दशादेशा भवन्ति ।। तु। वो । मे। तुम्भ । तुम्भ । तुम्भाण । तुवाण । तुमाण । नुहाण । उम्हाण । क्त्या-स्यादे णेस्वोर्वा (१.२७) इत्यनुस्वारे तुम्भाणं । नुवाणं । तुमाणं। तुहाणं । उम्हाणं ॥ भो म्ह-जझी बेसि । वचनात् तुम्ह । तुझ । तुम्हं । तुझ । तुम्हारा । तुम्हाणं तुज्झाग । तुज्माणं । घणं । एवं च त्रयो विंशति रूपाणि ॥
___ अर्थ:-संस्कन-मवनोन शब्द 'युष्मद' के पष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तन्य प्रत्यय 'ग्राम' की संयोजना होने पर पत. संस्कृन रूप-'युष्माकम्' अथवा वः के स्थान पर प्राकृतरूपान्तर में सर्व प्रथम ये दश रूप 'तु, यो, में, तुम्भ, तुम, तुम्भाण, तुवाण, तुमाण, तुहाण और