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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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'माला रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१८२ में की गई है।
अमू संस्कृत प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्ठ स्त्रीलिंग विशेषण (और सर्वनाम ) रूप है । इपके प्राकृत रूप अमूत्र और अमनो होते हैं। इनमें 'अमु' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार तत्पश्चात् सूत्र-मख्या ३-२७ से प्राप्तांग 'अमु' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'क' की प्राप्ति कराते हुए प्रथमा द्वितीया के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तथ्य प्रत्यय 'जस' और 'शस्' के स्थान पर दोनों विभक्तियों में समान रूप से 'उ' और 'श्री' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर दोनों रूप अभूउ और अमुभो सिद्ध हो जाते हैं ।
'मालाओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या-१७ में की गई है।
अमुना संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप अमुरण होता है। इसमें "भमु' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-२४ से तृतीया विभाग के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तध्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अमुणा रूप सिद्ध हो जाता है।
अमीभिः संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप भमूहि होता है। इसमें 'अमु' अंग रूप की प्रामि उपरोक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१६ से प्राप्तांग 'अमु' में स्थित अन्त्य हम्ब स्वर 'ज' को आगे तृतीया बहुवचन घोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से दीर्घ 'क' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभकि के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मिस' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रमूहि रूप सि हो जाता है।
अमुष्मात संस्कृत पश्चर्मर एकवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप अमूओ, श्रमर और अमहिन्तो होते हैं । इनमें 'प्रमु' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'अमू' में स्थित अन्त्य हरव स्वर 'ख' के 'श्रागे पञ्चमी एकवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' दीर्घ '' की प्राप्ति और ३८ से प्राप्तांग 'श्रम' में पञ्चमी विक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि-अस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'मो-अ-हिन्तो' प्रत्ययों को प्राप्ति होकर क्रम से 'अमूओ, अमृउ, और अमाहन्तो' रूप सिद्ध हो जाते हैं।
अर्माभ्यः संस्कृत पञ्चमी बहुवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप श्रमूहिन्ता और अमसुन्तो होते हैं । इनमें 'अमू' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१६ से प्राप्तांग 'अमु में स्थित अन्त्य ह्रस्व 'उ' के 'मागे पञ्चमी बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से वीर्घ 'क' की प्राप्ति और ३-६ से प्राप्तांग 'श्रम' में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'भ्यस्' के स्थान पर प्राकृत में कम से 'हिन्तो' और 'सुन्तो' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर अहिन्ती और अमूमन्तरे रूप सिद्ध हो जाते हैं ।