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संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डोश्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मारुय-तणओ रूप सिद्ध हो जाता है ।
'अह' रूप की सिद्धि ऊपर इसी सत्र में की गई है ।
कमल-मुखी संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप कमल-मुही होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-११ से प्रथमाविभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रातस्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य दोघं स्वर 'ई' को यथावत स्थिति प्राप्त होकर कमल-मुही रूप मिद्ध हो जाता है ।
रिस रूप को सिद्धि-सूत्र संख्या १-४२ में की गई है। महिला रूप को सिद्ध सूत्र संख्या १-१४६ में की गई है। वर्ण रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-१७२ में की गई है । ३-८० ॥
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
*9****900*66666666666666666695609900*1
मुः स्यादौ ३-८८ ॥
सदस्य वादों पर मुरादेशो भवति ।। अमू पुरियो । श्रमुखों पुरिसा । अमु चणं । श्रमूई वाई । अविणाणि । अमू माला । अउ श्रश्र मालाओ | अमुणा | अहिं || ङसि । अमू । श्रउ | अमूद्दिन्तो ॥ स् । अमूहिन्तो । अमूमुन्तो ॥ इस् । श्रमुणो । अमुस्स । श्रम् | अमूग || ङि । श्रमुम्मि !! सुप् । अभूसु ॥
I
अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अदस्' के प्राकृत रूपान्तर में विभक्ति बोधक प्रत्यय 'सि' आदि परे रहने पर मूल शब्द 'इस' में स्थित 'द' व्यञ्जन के स्थान पर ( प्राकृत में ) 'मु' व्यञ्जन की आदेशप्राप्ति होती है । उदाहरण इस प्रकार है अौ पुरुष: + अ पुरियो । धर्मी पुरुषाः अभुणो पुरिसा श्रदः वनम् = श्रमु ं वं । श्रमूनि वनानि श्रई वखाई अथवा अमूणि वजाणि । श्रसी मालामाला | अमू माला || अमूर अथवा अमूओ मालाओ। अन्य विभक्तियों के रूप इस प्रकार है:
1
विभक्ति नाम
तृतीया (बहुना = ) पंचमी ( अमुष्मात् )
षष्ठी (अध्य= ) सममी अमिन )
एकवचन
श्रमुणा ।
अमूओ, अमृउ अमूहिन्तो ।
सुखो असुस्त |
1
बहुवचन
( श्रमोभिः = ) अमूहिं ॥
( अमीभ्यः = ) अमूहिन्तो
अमूसुन्तो ।
( श्रमीषाम् = ) अभूख ।
( अमीषु == ) अमृसु
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