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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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करती है।
और म' प्रत्ययों की 'अदर्शन स्थित होकर एक ही रूप 'अह' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप इस विषयक अन्य उदाहरण इस प्रकार है: - असो मोहः पर-गुण लध्वयाते = अह मोहो पर-गुणलहुश्रयाइ-वह मोह दूसरों के गुणों को लघु कर देता है ( अर्थात् मोह के कारण से अन्य गुणवान् पुरुष के गुण भी हीन प्रतीत होने लगते हैं ।) अमौ श्रस्मान् हृदयं हसति मारुत तनयः ॥ थह ऐ हिश्रए हम मारुय तो वह मात-पुत्र हृदय से हमारी हँसी करता है; ( हमें हीन दृष्टि से देखकर हमारा मजाक करता है ) । असौ कम-मुह कमल-मुही अर्थात वह (स्त्री) कमल के समान वाली हैं।
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वैकल्पिक पक्षका सद्भाव होने से पक्षान्तर में मूत्र-संख्या ३८८ के विधान से 'अस' में स्थित 'द' व्यञ्जन के स्थान पर 'सि' आदि प्रत्ययों के परे रहने पर 'मु' आदेश की प्राप्ति होता है। तदनुसार 'अम्' शब्द के स्थान पर प्राकृत में अंगरूप से 'श्रमु' का सद्भाव भी होता है । जैसे:-- श्रसौ पुरुष: अमू पुरिमा; श्रमौ महिलामू पहला और बदः वनम् श्रमु वर्ण ।
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असी संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग विशेषण और सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप अह और अमू होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'अदस्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'स्' का लोप और ३-८७ से '' के स्थान पर 'ह' व्यञ्जन की आदेश प्राप्ति एवं इसी सूत्र से प्रथमा एकत्रचन बोधक प्रत्यय 'सिं=स्' के स्थानीय प्राकृतीय प्रत्यय 'खो=षो' का लोप होकर प्रथम रूप अह सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप ( असू+सिसौ = ) अम् में सूत्र संख्या १-११ से मूल शब्द 'अश्स्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'म' का लोप से 'द' के स्थान पर 'मु' की आदेश प्राप्ति और ३-१६ सं प्रथमा विभक्ति के एकवचन में उकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तष्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग द्वितीय रूप अमू सिद्ध हो जाता है ।
'पुरिसो' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-४२ में की गई है।
असे संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग विशेषय ( और सर्वनाम ) रूप है। इसके प्राकृत रूप 'अह' और 'अमू' होते हैं। दोनों रूपों की साधनिका उपरोक्त पुल्लिंग रूपों के समान होकर 'अह' और 'अमू' सिद्ध हो जाते हैं ।
'महिला' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१४६ में की गई हैं।
अदः संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त नपुंसक लिंग विशेषण ( और सर्वनाम ) रूप हैं। इसके प्राकृत रूप 'अह' और 'अ' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप की साधनिका उपरोक्त पुल्लिंग रूप समान ही होकर प्रथम रूप 'अह' सिद्ध हो जाता है ।