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प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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चतुर्थ रूप 'कहि' की सिद्धि सूत्र संस्था :-50 में की गई है। कम्सि' में 'क' श्रङ्ग की प्राप्ति का विधान उपरोक्त रोति अनुमार एवं तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-५६ से तममी विभक्ति के एक वचन में संस्कृती प्रत्यय 1 2' के स्थान पर प्रति म ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर पंचन रूप कर्सित सिद्ध हो जाता है।
'कम्मि' में भी उपगेक पंचम रूप के समान हो सूत्र संख्या ३-* के विधान में स्मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छट्ठा रूप कम्भि सिद्ध हो जाता है।
'कत्थ' में भी उपरोक्त पंचम रूप के समान ही सूत्र संख्या ३-५६ के विधान से 'स्थ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सप्तम रूप कत्थ सिद्ध हो जाता है।
यस्मिन् संस्कृत सप्तमी एक वचनान्त ( समय-स्थिति-बोधक ) विशेषण रूप है इसके प्राकृत रूप जाहे, जाला और जइबा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-२४५ से मल संस्कृत शब्द 'यद्' में स्थित 'य' के स्थान पर 'ज' को प्राप्तिः १-११ से अन्य हलन्त व्यञ्जन 'द' का लोप और ३-६५ से प्राप्तांग 'ज' में सप्तमो विभक्ति के एक वचन में संस्कृतोय प्रत्यय 'हि' के स्थान पर प्राकृत में 'डाहे आहे' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप जाहे सिद्ध हो जाता है।
जाला में 'ज' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-विधान के अनुसार एवं तत्पश्चात सूत्र संख्या ३-६४ से प्रथम रूप के समान ही 'माला' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप जाला सिद्ध हो जाता है।
जइया में 'ज' अंग की प्राप्ति का विधान उपरोक्त रीति-अनुप्तार एवं तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-६५ से प्रथम-द्वितीय रूपों के समान हो 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सृतीय रूप जइआ भी सिद्ध हो जाता है।
तस्मिन् संस्कृत सप्तमी एक वचनान्त ( ममय-स्थिति-बोधक) विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप ताहे, ताला और तइत्रा होते हैं । इनमें सत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप और ३-६५ से प्राशंग 'त' में मातमो विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'कि=इ' के स्थान पर कम से 'वाहे आहे; डाला - श्रोला और इया' प्रत्ययों की प्रादेश-प्राप्ति होकर तीनों रूप तहि, ताला और तइभा सिद्ध हो जाते हैं।
'ताला' रूप की सिशि इसी सूत्र में ऊपर की गई है।
जायन्ते संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप जाअन्ति होता है। इसमें सत्र-संख्या १-२७७ से 'य' का लोप और ३-१४२ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के बहु वचन में संस्कृतीय पात्मनेपदीय प्रत्यय 'न्ते' के स्थान पर प्राकृत में 'न्ति' प्रत्यय को प्रानि होकर जान्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
'गुणा' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-११ में की गई है। 'जाला' रूप की सिद्धि सत्र-संख्या १-१६९ में की गई है !