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संप्राप्तांग इम' में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तभ्य प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर प्रत्यय की देश-प्राप्ति होकर इसे रूप सिद्ध हो जाता है।
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'इ' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८१ में की गई है।
इमान्, संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमे होता है । इसमें 'इम' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त (३-०२ के) विधान के अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'इम' में स्थित अन्त्य स्वर '' के स्थान पर 'आगे द्वितीया बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से प्राप्तांग 'इमे' में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में पुल्लिंग में संस्कृती प्रामस्य प्रत्यय 'जस्' का प्राकृत में लोप होकर इसे सिद्ध हो जाता है ।
* प्रियादय हिन्दी व्याख्या सहित
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'इमेज' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ६९ में की गई है।
इयम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमा होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-७२ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम् के स्थान पर 'इम' अंग रूप की देश-प्राप्ति २-४ के निर्देश से प्राग 'इम' में पुल्लिंगश्व से स्त्री-लिगल के निर्माण हेतु 'श्रा' प्रत्यय की प्राप्ति और १-११ से प्रातांग 'इमा मे प्रथमा त्रिभक्ति के एकवचन मे संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सिन्स्' का प्राकृत में लोप होकर इस रूप सिद्ध हो जाता है। २-७२ ।।
पु-स्त्रियोर्न वायमिमिया सौ ।। ३-७३ ।।
इदम् शब्दस्य सौ परे चयनित पुल्लिंगे इमिग्रा इति स्त्रीलिङ्ग प्रादेशो वा भवतः ॥ वायं कय वज्जो | इमिया वाणिअ-धूया । पचे । इमो | इमा |
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अर्थ:-संस्कृत मर्वनाम 'इम्' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीन प्रत्यय 'सि' की प्रामि होने पर इदम + मि' के स्थान पर पुल्लिंग में 'श्रम' रूप की और सीलिंग में 'इमिश्रा' रूप की वैकनिक रूप से आदेश प्राप्ति हुआ करता है। जैसे- श्रथवा श्रयम् कृत कार्य:- अहत्रा अयं कयकता; यह पुल्लिंग का उदाहरण हुआ। जीलिंग का उदाहरण इस प्रकार है: -- इयम धाणिका दुहितादमिया वाशिअ धूआ । वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पुल्लिंग में 'इदम्+ सि' का 'इम' रूप भी प्राकृत में बनेगा और स्त्रीलिंग में 'इयम्' का 'इमा' रूप भी बनता है।
'अहवा' अव्यय की सिद्धि सुत्र संख्या १-६७ में की गई है।
अयस् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप श्रय और इमो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-७३ के विधान से संस्कृत के समान ही 'अयम् रूप की आदेश प्राप्ति और १-२३ से अन्य हलन्त व्यञ्जन 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर अर्थ रूप सिद्ध हो जाता है ।