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* प्राकृत व्याकरण
श्रहित; एतेषाम् गुणा-सिं गुणा अर्थात् इनके गुण-धर्म और एतेषाम् शीलम् = सिं सील अर्थात् इनका शील-धर्म | इन उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि 'इदम् तद् और एतद्' सर्वनामों के षष्ठो विभक्त के एकवचन में समान रूप से 'से' और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी समान रूप से सिं' रूप की देश-प्राप्ति होती है।
वैकल्पिक पक्ष को सद्भाव होने से पक्षान्तर में 'इदम् तद् और एतद्' के जो दूसरे रूप होते हैं; वे एकवचन और बहुवचन में क्रम से इम प्रकार हैं: - इदम् के ( अस्य = ) इमस्त और (एषाम् ) इमेि और इमाण । तद् के ( तस्य= ) तरस और ( तेषाम् ) तेर्सि और ताण । एतद् के ( एनश्य= ) एहस और ( एतेषाम् = } पर्सि और एषाण । कोई कोई व्याकरण-कार 'इदम' और 'तद्' सर्वनामों के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी एकवचन के समान ही 'मूल शब्द और श्रम्' प्रत्यय के स्थान पर 'से' आदेश प्राप्ति मानते हैं । इन व्याकरण-कारों की ऐसी मान्यता के कारण से षष्ठी विभक्ति के दोनों वचनों में 'शब्द और प्रत्यय के स्थान पर' 'से' रूप की प्राप्ति होकर एक रूपता' का सद् भाव होता है ।
अस्य संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम पुल्लिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप से और इमस्ल होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप अस्य' के स्थान पर प्राकृत में 'सें' रूप की देश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप से सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'हमस्य' की सिद्धि सूत्र संख्या ९७४ में की गई हैं।
शीलम संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सील होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में नपुंसक लिंग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर 'सील' रूप सिद्ध हो जाता है ।
गुणाः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप गुणा होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-१२ से मूल अंग 'गुण' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे प्रथमा विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'आ' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृती प्राप्तम्य प्रत्यय 'जस' का प्राकृत में लोप होकर गुणा रूप सिद्ध हो जाता हूँ ।
एवम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप निं', 'इमेसिं' और 'इमान' होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ६-८१ से सम्पूर्ण रूप 'पाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'सिं' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'सिं' सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय और तृतीय रूप 'इमे तथा इमाण' की सिद्धि सूत्र संख्या ३-६१ में की गई हैं। 'अच्छा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११४ में की गई है।