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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
तस्य संस्कृत पुल्लिंग पठी एकवचनान्त सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप से' और तर होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप 'तथ्य' के स्थान पर प्राकृत में '' रूप का आदेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप से' सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप 'तस्' की सिद्धि सूत्र संख्या २-९८६ में की गई है।
'सी' रूप की सिद्धि इसी सूत्र में उपर की गई है ।
तेवा संस्कृत षष्ठो बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'सिं', 'मिं' और 'ताण' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-८१ से सम्पूर्ण रूप 'तेषाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'सिं' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'भिं' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप तेसिं की सिद्धि सूत्र संख्या ३-३१ में की गई है।
तृतीय रूप 'ताण' की सिद्धि सूत्र संख्या ३-३३ में की गई है। "गुण" की सिद्धि इसी सूत्र से की गई।
'एतस्थ' संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'से' और 'एअरस होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-८१ से संपूर्ण रूप 'एतस्य' के स्थान पर प्राकृत में ' से ' रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'से' सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप ( एतस्य ) एम्स में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'एलद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'दू' का लोप; १-१७० से 'तू' का लोप और ३-१० से प्रामांग 'एम' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रामन् प्रत्यय 'छस् = अस्स्य' के स्थान पर प्राकृत में संयुक्त 'रुप' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप 'एस्स' की सिद्धि हो जाता है।
अहम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप अहिष्नं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७५ से 'तू' को लोप; ३००५ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में संस्कृती प्राप्तभ्य प्रत्यस्म 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म्' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति और १०२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर आकृतीय रूप अहि सिद्ध हो जाता है ।
एतेषाम् संस्कृत पष्ठो बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'लिं' और 'एएस' तथा 'एआय' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३८१ से संपूर्ण रूप 'एतेषाम्' के स्थान पर प्राकृत में 'सिं' रूप की प्रदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'सि' सिद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप 'एएसें' की सिद्धि सूत्र संख्या ३१ में की गई है।
तृतीय रूप 'एआण' की सिद्धि सूत्र संख्या १६१ में की गई हैं।