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*प्राकृत व्याकरण *
द्वितीय रूप 'इमे' की सिद्धि सूत्र-संख्या 8-97 में की गई है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप को सिद्धि सूत्र-संख्या १3 में की गई है।
अनेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुस्लिग सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप णण' और 'इमेज' होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में 'ण' अंग रूप की प्राप्ति उपरोक्त ति अनुसार; तत्पश्चात सूत्र संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'ण' में स्थित अन्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे हनीया विभक्ति एकवचन के प्रत्यय का सदुभाव होने से Q' को प्राप्ति और ३-६ से प्राप्तांग रणे' में नताया विभक्त के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होकर प्रथम रुप 'गेण सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'इमेण' की मिद्धि सूत्र-संख्या ३-७२ में की गई है।
एभिः संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है इसके प्राकृत रूप हि और 'इमेहि' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में 'ण' श्रग रूप की प्राप्ति उपरोक्त रीति-अनुसार; तत्पश्चात् सत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग 'ण' में स्थित अन्त्य स्वर 'श्र' के स्थान पर 'आगे नतम्या विभक्ति बहुवचन के प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-७ से प्राप्तांग ‘णे' में तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मिस' के स्थान पर प्राकृत में हिं प्रत्यय की प्रादेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'गाह' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-(एभिः-) इमेहि में सूत्र-संख्या ३-७२ से मूल संस्कृत शमन 'इम' के स्थान पर प्राकृत में 'इम' अंग रूप की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान हो सूत्र-संख्या ३-१५ एवं 1-5 से प्राप्त होकर द्वितीय रूप 'इमेहि भी सिद्ध हो जाता है।
कयं क्रियापन रूप की सिदि सूत्र-संख्या १-१२६ में की गई है । ३-७४ ।।
अमेणम् ॥ ३-७८ ॥ इदमोमा सहितस्य स्थाने इणम् इत्यादेशो वा भवति ।। इणं पेच्छ । पहे। इमं ।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के द्वितीश विभक्ति के एकवचन में पुल्लिग प्रायव्य प्रत्यय 'अम्' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'इमम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इम' रूप की अादेश-प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है । इसमें यह स्थिति बतलाई गई है कि- 'इदम् शब्द और अम प्रत्यय' इन दोनों के स्थान पर 'इणम्' रूप की आदेश प्राति वैकल्पिक रूप से हुश्रा करती है, जैसे:-इमम् पश्यइण पेच्छ अर्थात् इसको देखो। वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पनान्तर में इमम् का प्राकृत रूप 'धर्म' भी होता है।