________________
[ १४० ]
4446054444499
के रूप में 'आई और आला' (प्रत्ययों की संयोजना होती है। इसी तृतीय पात्र के सूत्र संख्या ३-३० और ३-५६ में क्रम से यह विधान निश्चित किया गया है कि 'संस्कृतीय सप्तमी विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय' 'ङि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं, म्सि, म्मि और त्थ' प्रत्ययों को आदेश प्राप्ति होतो है'; तदनुसार उक्त सूत्र संख्या ३६० ओर ३-५३ के प्रति इस सूत्र (३ ६५ ) को अपवाद रूप सूत्र समझना चाहिये । पक्षान्तर में हिं. सि, किम और त्य' प्रत्ययों का अस्तित्व भी है; ऐसा ध्यान में रखना चाहिये । प्रदाहरण इस प्रकार हैं:
* प्राकृत व्याकरण * $40944000000000000090096bu Batuhat
कश्मिन् = ( किस समय में ) - काहे, कला, कहा और पक्षान्तर से कहिं, कति कमि और कत्थ । यस्मिन् - ( जिस समय में ) = जाहे, आला और जया पक्षान्तर में जहिं, जग्सि, जम्मि और जत्थ ( भी होते हैं ) । तस्मिन = ( उप समय में ) = ताई, ताज़ा और तत्रा एवं बज्ञान्तर में तीिं, तिमि और तत्थ ( मी होते हैं ) ।
किसी पथ षिशेष से प्रन्थ-कतों ने अपने मन्तव्य को स्पष्ट करने के लिये निम्नोक्त छन्दांश को वृति में उधृत किया है:
संस्कृतः - तस्मिन् जायन्ते गुणाः यस्मिन् से सहृदयः गृह्यं ते ।
प्राकृत रूपान्तरः- ताला जायन्ति गुणा जाला ते सहिश्रएहिं घेप्पन्ति ।
हिन्दी भाषार्थ :- उस समय में गुण ( वास्तव में गुण रूप ) होते हैं; जिस समय में वे (गुण) सहृदय पुरुषों द्वारा पण किये जाते हैं । (अथवा स्वीकार किये जाते हैं ) ।
इस दृष्टान्त में 'त' और 'ज' शब्द समय वाचक स्थिति के द्योतक हैं, इसीलिये इनमें सूत्र संख्या ३-६५ के विधानानुसार 'बाला आला' प्रत्यय की संयोजना की गई है; यो अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये ।
=
कस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त (समय स्थिति-बोरु) विशेष रूप है। इसके प्राकृत रूप काहे. काला, कड्या, कहि, कति, कम्मि और कत्थ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द किम् के स्थान पर प्राकृत में 'क' अंग की प्राप्ति और ३-६५ से प्राप्तांग 'क' में (समय-स्थित-बोधकता के कारण से ) सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीयप्रत्यय '' के स्थान पर प्राकृत में 'ढाई आहे' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होकर प्रथम रूप का सिद्ध हो जाता है ।
द्वित्तीय और तृतीय रूप 'काला एवं कइभ' में भूज़ 'क' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधिअनुसार एवं तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३ ६५ से प्रथम रूप के समान हो क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से 'डाला भाला और श्या' प्रत्ययों की प्रवेश प्राप्ति होकर काला और का रूप सिद्ध हो जाते हैं ।