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* प्राकृत व्याकरण *
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३-२९ से कम से प्राप्तांग 'ता' और 'ती' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'डि' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप ताए और नए सिद्ध हो जाते हैं ।
अस्मिन् संस्कृत नमो एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम का रूप है। इसकी प्राकृत रूप इमसि होता है। इसमें सूत्र संख्या ३ १२ से संस्कृतीय सर्वनाम रूप 'इदम्' के स्थान पर 'इम' श्रादेशप्राप्ति और ३०५६ से प्राप्तांग 'इम' में विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'कि=इ' के स्थान पर प्राकृत में 'रिस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर इस रूप शिद्ध से जाता है।
एतस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप एव्यस्त होता है। इसमें सूत्र- संख्या १-११ से मूल संस्कृत-सर्वनाम एतद् में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'दू' का लोप १-१७७ से 'तू' का लाप और ३-५६ से प्राप्तांग 'एच' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'बि६' के स्थान पर प्राकृत में 'स्पि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर एमसि रूप सिद्ध हो जाता है । ३-६० -
आमो डेसिं ॥ ३-६१ ॥
सर्वादिरकारान्तात्परस्यामो डेसिमित्यादेशो वा भवति ॥ सव्येसि । अन्नेति । अवरेसिं । इमेसिं । एए सिं । जेसिं । तेसिं । केसि । पते । सव्वाण | अन्नाथ | अवराण । इमाण । एमाण । जाण । तारा काम || बाहुलकात् स्त्रियामपि । सर्वामाम् । सच्चेसिं ॥ एवम् अन्नेसिं । तेसिं ॥
अर्थ:--म ( सव) आदि अकारान्त सर्वनामों के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृताय प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'सि' प्रत्यय की प्रवेश-प्राप्ति हुआ करती है। प्राकृत में आदेश शप्न प्रत्यय 'डेसिं' में स्थित 'जू' दासंज्ञ है; तदनुमार श्रंग रूप प्राकृत सर्वनाम शब्दों में स्थित अन्त्य 'अ' स्वर की इत्संक्षा होने से इस अन्त्य 'अ' का लोप हो जाता है एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूप में उक्त पड़ी-बहुवचन- बोधक प्रत्यय 'डेसिं=एसिं' की संयोजना होती है। जैसेः--सर्वेषामू सव्वेति अथवा पक्षान्तर में सन्त्राण | धन्येषाम् अनति अथवा पज्ञान्तर में अन्ना । अपरेषाम अवरे अथवा पक्षान्तर में अवराण स्वाम्-हमेि अथवा पक्षान्तर में इमाण । एतेषाम् एसिं अथवा पक्षान्तर में एओए । येषाम = जेसिं अथवा पक्षान्तर में जान पाते अथवा पक्षान्तर में ताण षसि अथवा पक्षान्तर कारण। 'बहुल' सूत्र के अधिकार से अकारान्त सर्वनामों के अतिरिक्त अकारान्त स्त्रीलिंग वाले सर्वनामों में मी षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतोय प्रत्यय 'माम् के स्थान पर (प्राकृत में 'देखि सिं प्रत्यय
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