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* प्रियोश्य हिन्दी व्याख्या सहित #
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हलन्त व्यञ्जन "दू" का लोप, ३-६२ से प्राकृतीयमासांग "त" में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय "आ" के स्थान पर प्राकृत में "डास" प्रत्यय की प्राप्ति, प्राप्त प्रत्यय ' डास " में स्थित "डू" इत्संज्ञक होने से "त" में स्थित अन्त्य स्वर "अ" की इत्संज्ञा होकर इस "अ" का लोप एवं हलन्त "त्" में उपयुक्त "डासश्रास" प्रत्यय की संयोजना होकर प्रथम रूप तास सिद्ध हो जाता है ।
रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३६१ में की गई है । ३-६२ -
किंयत्तभ्योङसः ॥ ३-६३ ॥
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एभ्यः परस्य स: स्थाने डास इत्यादेशो वा भवनि । इसः सः (३-१० ) इत्याख्या - पवादः । पते सोपि भवति || कास । कस्स । जास । जस्स | तास । तस्स । बहुलाधिकारात् । किंतद्भयामाकारान्ताभ्यामपि डासादेशो वा । कस्या धनम् | कास धणं ॥ तस्या धनम् | तास. । पछे । काए । ताए ॥
अर्थः - संस्कृतीय सर्वनाम किम्, यद् और तद के कम से प्राप्त प्राकृत रूप "क", "ज" और "त" में पड़ी त्रिभक्ति के वचन में संस्कृतोय प्रत्यय "उस्=अस्" के स्थान पर प्राकृत में "डास" का आदेश बैकल्पिक रूप से हुआ करता हैं । प्राकृत में प्रदेश रूप "डास" में स्थित "इ" इत्संज्ञक हैं;तदनुसार प्राकृत सर्वनाम रूप 'क', 'ज' और 'त' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' की इत्संज्ञा होने से इस अन्त्य स्वर 'अ' का लोप हो जाता है । एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूप 'कू', 'ज' और 'त' में उक्त पठी एकवचन का प्रत्यय 'डास = ग्रास' की संयोजना होती है। जैसे:कस्य = कास; यस्य जाम और सत्यतास। इस तृतीय पाद के दशवे सूत्र में यह विधान निश्चित. किया गया है कि 'संस्कृतिीय षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'इस्=अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'स' का आदेश होता है। तदनुसार उक्त सूत्र संख्या २०१० के प्रति इस सूत्र (३-३३) को अपवाद रूप सूत्र-समझना चाहिये। इस प्रकार इस अपवाद रूप स्थिति को ध्यान में रखकर हो प्रन्थ-फत्ती ने 'वैकल्पिक स्थिति' का उल्लेख किया है; तदनुमार वैकल्पिक स्थिति का सद्भाव होने से पक्षान्तर में सूत्र संख्या ३-९० के आदेश से 'क', 'ज' और 'त' सर्वनामों में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राकृत में 'रस' प्रत्यय का अस्तित्व भी स्वीकार करना चाहिये। इस विषयक उदाहरण इस प्रकार हैं:कस्य करसः यस्य =जस्म और तस्य = तस्त ।
'बहुलं' सूत्र का अधिकार होने से 'क' के स्त्रीलिंग रूप 'का' में और 'त' के स्त्रीलिंग रूप 'ता' में भी षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्रत्यय 'अम्' के स्थान पर प्राकृत में यैकल्पिक रूप से 'डास' आदेश हुआ करता है। प्राकृत में आदेश 'डास' में स्थित 'ड' इत्संज्ञक है। तदनुसार प्राकृतः सर्वनाम स्त्रीलिंग रूप 'का' और 'ता' में स्थित अन्त्य स्वर 'या' की इत्संज्ञा होने से इस अन्त्य