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*प्राकृत व्याकरण Prerritosessorro00000000rrorecorrectrosteron.esko+00000000000000000. रुपर 'श्रा' का लोप हो जाता है एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूपक' और 'त्' में उक्त षष्ठो विभक्ति एकवचन-(बोधक-प्रत्यय। आस-पास' की संयोजना होती है । जैसे- कस्या धनम् = कास धणं ? और तस्या धनम् = तास घणं वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पक्षान्तर में 'कस्या' का 'काए' रूप भी बनता है और 'तस्या' का 'ताए' रूप भी होता है।
कस्य सस्कृत षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम पुल्लिंग का रूप है । इसके प्राकृत रूप कास और कस्म होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सत्र-संख्या ३-७२ से मूल संस्कृत शब्द 'किम् के स्थान पर प्राकृत में 'क' रूप की प्राप्ति और ३.६३ से 'क' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कनीय प्रत्यय 'डान = अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डासम्झास' प्रत्यय को (आदेश) प्राप्ति होकर प्रथम रूप कास सिद्ध हो जाता है।
कस्स रूप को सिसि सूत्र-संख्या -२०४ में की गई है।
यस्य संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त सर्वनाम पुल्लिंग का रूप है। इसके प्राक़त रूप जास और जस्स होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सत्र-संख्या १-२४५ से मूल संस्कृत शब्द 'यद्' में स्थित 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राति १-११ से 'अन्य स्तमा ज्यान 'द का लोप और ३-६३ से प्राप्तांग 'ज' में षष्ठो विभक्ति के एकवचन में संस्कृनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सन्स' क स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से डास = पास प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप जास सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप (यस्य ) जस्स में पूर्वोक्त रीति से प्राप्तांग 'ज' में सूत्र संख्या ३-१० से षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'उत-अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप जस्स भी सिद्ध हो जाता है।
तस्य संस्कृत षष्ठी एक वचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम को रूप है । इसके प्राकृत रूप साप्त और तस्स होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द' का लोप, और ३.६३ से 'त' में षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृनाय प्रत्यय इस्-अस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास-पास' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप तास सिद्ध हो जाता है।
तस्स रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८६ में की गई है।
कस्याः संस्कृत पष्ठी एक वचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है इसके प्राकृत रूप कास और काए होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र- संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर 'क' रूप को प्राप्ति ३-३२ और २-४ के निर्देश से 'क' में पुल्लिगत्व से स्त्रीलिंगत्व के निर्माण हेतु 'या' प्रत्यय की प्राप्ति और ३.६३ की धुति से प्राप्तांग 'का' में षष्टी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इस अस' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास-पास' प्रत्यय की आवेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप कास सिद्ध हो जाता है।