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प्राकृत व्याकरण i nmeth000000000000000rnerkravarteoroork000 प्राप्ति का अभाव दृष्टि-गोचर होता है। अतएव प्रभावात्मक स्थिति में 'हि' प्रत्यय का निषेध किया जाना न्यायोचित और व्याकरणीय-विधान के अनुकूल ही है । जैसे-अस्मिन = इमरिंस और एतस्मिन - एअस्ति इत्यादि । यों सप्तमी विभक्ति के एकवचन में सवनामों में प्राप्तव्य प्रत्यय 'हि' की स्थिति को समझ लेना चाहिये।
सर्वस्मिन संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप सयहि होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-६ से 'र' का लोप; २-4 से लोप हुए 'र' के पश्चात रहे हुए 'व' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति और ३-६० से सप्तमी विभक्ति के एकत्रचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'fe=' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सवाह रूप सिद्ध हो जाता है।
__अन्यस्मिम् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है । इसका प्राकृत रूप अन्नहि होता है । इसमें सुत्र संख्या २-से 'य' का लोप; होकर २-८६ से लोप हुए य' के पश्चात् रहे हुए 'न' को द्वित्व 'न' की प्राप्ति और ३.६० से प्राप्तांग 'बन्न' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तब्य प्रत्यय कि-द' के स्थान पर प्राकृत में हं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अन्न िरूप सिद्ध हो जाता है।
फस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है । इसका प्राकृत रूप कहिं होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-७९ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर 'क' अंग को प्राप्ति और ३-६० से प्राप्तांग 'क' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रतिव्य प्रत्यय शि' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कह रूप सिद्ध हो जाता है।
रस्मिन संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप जहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२४५ से मूल संस्कृत शब्द 'यत्' में स्थित 'यक स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य हलन्त व्यान 'त' का लोप और ३.६० से प्राप्तांग 'ज' में सप्तमी विभक्ति के एकवधान में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'कि' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की (आदेश) प्राप्ति होकर जहिं रूप सिन हो जाता है।
तस्मिन् संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत-रूप सहि होता है। इसमें सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द्ध तत' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'स्' का लोप और ३-६. से प्राप्तांग 'त' में सप्तमी विमक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय मिन्ह' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तर्हि रूप सिद्ध हो जाता है।
कस्पाम संस्कृत सप्तमी एकवचनाम्त सर्वनाम का स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप काहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.७१ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति; ३.३१ एवं २-४ से प्राप्तांग 'क' में स्त्रीलिंग-प्रबोधक श्रा' प्रत्यय की प्राप्ति और ३.६० से प्राप्तांग 'का'