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*प्राकृत व्याकरण w+torsmootosroorstetronorartootocortiorrorrorontroloreroortoon
अर्थ:-सर्व (= सन्च) आदि अकारान्त सर्वनामों के प्राकृत रुपान्तर में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तम्य प्रत्यय 'डि ' के स्थान पर क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से)-'सि'-म्मिस्थ ये आदेश प्राप्त रूप प्रत्यय प्राप्त होते हैं। जैसे:-सर्वस्मिनसध्यस्सि अथवा सम्बम्मि अथवा सव्यत्य । अन्यस्मिन् - अनस्सि-अथवा अन्मम्मि अथवा अन्नस्थ । इसी प्रकार से अन्त्य अकारान्त सर्वनामों के संबंध में भी जानकारी कर लेना चाहिये ।
प्रथमः -'अकारान्त' सर्वनामों में ही कि= इ' के स्थान पर 'सि-म्मि-स्य' आदेश-प्राप्ति दुधा करती है, ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर:-अकारान्त सर्वेनामों के अतिरिक्त उकारान्त आदि अवस्था प्राप्त सर्वनामों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'कि इ' के स्थान पर 'सि-म्मि-स्थ' श्रादेश प्राप्त-प्रत्ययों की प्राप्ति नहीं होती है। किन्तु केवल "छि - इ' के स्थान पर मिम' प्रत्यय को ही आदेशप्राप्ति होती है; इस विधि-विधान को प्रकट करने के लिये ही 'अकारान्त सर्वनाम' ऐसा उल्लेख करना पड़ा है। जैसे:-अमुष्मिन् ८ अमुम्मि; इत्यादि ।
सर्वस्मिन् संस्कृत सप्तमी-एकवचनान्त सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप-'सम्यसि सम्वम्मि और सम्वत्थ होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २.७५ से 'र' का लोप; २८ से लोप हुए 'र' के पश्चात रहे हुए 'व' को द्वित्व 'व' की प्राप्ति और ३.५९ से प्राप्तांग 'सच' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'विइ' के स्थान पर कर सं (पवं वैकल्पिक रूप से.) भिम्मि-त्थ' प्रत्ययों को आदेश-प्राप्ति होकर क्रम से तीन रूप-सम्मास्ति, सयाम्म और सपथ सिद्ध हो जाते है।
अन्यस्मिन संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त मर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप-अन्नस्सि, अन्नम्मि और अन्नस्थ होते हैं । इनमें सूत्र-संख्या २-३८ से 'य' का लोप; २-48 से लोप हुए 'य' के पाचात शेष रहे हुए 'न' को द्विस्य 'न्न" की प्रापि और ३.१ से प्राप्तांग 'मन्न' में सममी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतोय प्राप्तव्य प्रत्यय कि- के स्थान पर क्रम से-(एवं वैकल्पिक रूप से.) FAमि-स्थ' प्रत्ययों की आदेश-प्राप्ति होकर क्रम से सीनों ग्रुप. अन्नस्ति, अन्नामि और अन्नस्थ सिद्ध हो जाते हैं।
___ अमाम संस्कृत सप्तमी एकवचनान्स सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रुप अमुम्मि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'अद्स' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'स' का लोप; ३-८८ से 'द' के स्थान पर 'गु' आदेश की प्राप्ति और ३.११ से प्राप्तांग 'अमु' में सप्तमी विभक्ति के पकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय कि- के स्थान पर प्राकृत में 'मिस' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अमाम्म रूप सिद्ध हो जाता है। ३.५६ 11