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.: * प्राकृत व्याकरण * •merimentratimeosetortoitreastestronowroomenorrenormonsorror
३.१५५ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' को 'इ' की प्राप्तिः २.१७. से संस्कृतीय कृदन्तात्मक प्राप्त प्रत्यय 'त' का लोप; ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में प्राप्त संस्कृतीय प्रत्यय 'शस्' के स्थानीय रूप 'न' का प्राकृत में लोप और ३.१४ से प्राप्त रूप मणिरता' में स्थित लान्ट सं गनमा प्रत्यय 'स' में से शेष 'अ' के स्थानीय रूप 'या' के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति होकर 'भणिए' रूप सिद्ध हो माता है। -३-४॥
इदूतोर्हस्वः ॥ ३-४२ ॥ आमन्त्रणे सौ परे ईदन्तयोईस्वो भवति ॥ हे नइ । हे गामणि । हे समणि । है बहु । हे खलपू. ॥
अर्थः-दीर्घ इकारान्त और दीर्घ ऊकारान्त प्राकृत स्त्रीलिंग शब्दों में संबोधन के एकवचन में 'सि' प्रत्यय परे रहने पर विधानानुमार प्राम प्रत्यय सि का लोप होकर अन्त्य दीर्घ स्वर के स्थान पर सजातीय हुस्व स्वर की प्राप्ति होती है। जैसे:-हे नदि ! = हे नइहे ग्रामणि हे गामणि; हे श्रमणि ! =हे समणि; हे वधु-हे वहु और हे खलपु-हे खलपु । इत्यादि ।। हे नदि । संस्कृत संबोधन एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप हे नइ होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'द्' का लाप और ३-४२ से संबोधन के एकवयन में अन्त्य दीर्घ-स्वर । के त्यान पर हस्व स्थर 'इ' की प्राप्ति एवं १-११ से प्रथमा-विभक्तिवत् संबोधन के एकवचन में प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'स' का लोप होकर संबोधनात्मक एकवचन में प्राकृतीय रूप हे नइ ! सिद्ध हो जाता है।
हैं ग्रामणि ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप हे गामणि ! होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-० से 'र' का लोप; ३-४२ से संबोधन के एकवचन में मूल-शरद प्रामणीगामणा में स्थित अन्त्य दीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' की प्राप्ति और १-५१ से प्रथमा विभक्ति के समान ही संबोधन के एकवचन में प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'स' का लोप होकर संबोधनात्मक एकवचन में प्राकृतीय रूप हे गामणि ! सिद्ध हो जाता है।
है श्रमाण ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप हे समणि ! होता है इसमें सूत्र-संख्या २-१ से 'र' का लोप; १-२६० से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति, ३-४२ से संबोधन के एकवचन में मूल शब्द 'श्रमणि-समणी' में स्थित अन्त्य वीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर हस्व'' की प्राप्ति और १-११ से प्रथमा विभक्ति के समान ही संबोधन के एकवचन में प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'स' का लोप होकर हे समाण! रूप सिद्ध हो जाता है।
हे पधु ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप हे बहु होता है ! इसमें