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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
प्राकृत में 'णा' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्पणा रूप सिद्ध हो जाता है।
आलाभ. संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप अपेहि होता है। इसमें 'आत्मन् = अप्प' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-३५ से प्राप्तांग 'अप्प' में स्थित अन्त्य 'अ' फे 'पागे तृतीया-बहुवचन-(बोधक-प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की
र ३७ सीमा लिने बहुमत में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मिस' के स्थान पर प्राकृत में हिं प्रत्यय की प्राप्ति होकर अमेहि रूप सिम हो जाता है।
आत्मनः संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत-रूप अप्पाणो, अप्पारो, अप्पाउ, अप्पाहि अप्पहिन्तो और अप्पा होते हैं। इनमें 'अप्प' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार सत्पश्चात् सुत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'अप' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे पंचमी-एफवरन(योधक-प्रत्यय) का सद्भाव होने से' 'आ' की प्राप्ति; और ३-५० से (तथा ३-५६ के निर्देश से}. प्राप्तांग 'अप्पा' के प्रथम रूप में परमी विभक्ति के एकचन में संस्कृतीय प्रत्यय हसि-प्रस' के स्थान पर प्राकृत में 'यो' प्रत्यय की वैकनिक रूप से प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'अप्पाणो सिव हो जाता है।
शेष पाँच रूपों में प्राप्तांय 'अप्पा' में सूत्र संख्या ३-- से पंचमी विभक्ति के एकवचन में मंस्कृतीय प्रत्यय 'सिम्प्रस' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से दो-प्रो, दु-उ, कि, हिन्तो और (प्रत्यय-) लुक' प्रत्यवों की की प्राप्ति होकर क्रम से शेष पाँच हप-'अप्पाओ, अप्पाउ, अव्याह अप्याहिन्तो और अप्पा सिद्ध हो जाते हैं ।
आत्मभ्यः संस्कृत पञ्चम्यन्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप अप्पा-सुन्तो होता है। इसमें 'प्रात्मन्स अप' अंग की प्राप्ति उपरोक विधि-अनुमार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१३ से प्राप्तांग के 'अप्प में स्थित अन्त्य ' के आगे पंवमी-बहुवचन-(बोधक प्रत्यय) का मभाव होने से 'श्रा' को प्राप्ति
और ३-६ से प्राप्तांग 'अषा' में पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'भ्यस' के स्थान पर प्राकृत में 'सुन्तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्पासुन्ती रूप सिद्ध हो जाता है।
भात्मनः संस्कृत षष्ठयन्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप अप्परमा होता है। इनमें 'आत्मन-अप' अंग की प्राप्ति उपरोक विधि-अनुभार; तत्पश्चाम सूत्र संख्या ३.५० से (तथा ३-५६ के निर्देश से) षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'कम् = अस्' के स्थान पर प्रान्त में गो' प्रत्यय की माप्ति होकर अपणो रूप सिद्ध हो जाता है।
'm' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-५० में की गई है।
आत्ममास संस्कृत्त पटवन्त बहुषचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप अप्पाणं होता है। इसमें 'प्रास्मन् अप्प' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-१२ से प्राप्तांग