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*प्राकृत व्याकरण * ++600.worko+640404&00000000000000000000000000000***404660460007460064
आत्मा संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप अप्पा और श्रप्पो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप 'अप्या' की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-५१ में की गई है । द्वितीय रूप-अपो' में सूत्र संख्या १.११ से मूल संस्कृत शब्द 'श्रात्मन' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'म्' का लोप, ३.५१ से 'स्म' अवयव के स्थान पर q' की श्रादेश-प्राप्ति २.८६. से श्रादेश-प्राप्त 'प' को द्विस्त 'प' को प्राप्ति और ३.२ से प्रधमा विभक्ति के रकवचन में (पाप रूप-) अकारान्त पुल्लिग में संस्कृतीय प्राप्तव्य "से' के स्थान पर प्राकृत में 'डो - प्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्विनीय रूप अप्पो मि हो जाता है।
हे आत्मन दाल संगोपना नाक काप है। गले प्राकृन कप हे अरपा ! और हे अप्प! होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १.६४ से मूल संस्कृत शब्द 'आत्मन' में स्थित दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति ३-५१ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्म' के स्थान पर '' की प्रादेश को गतिः ५-८६ से आदेश प्राप्त को द्वित्व '' की प्रापि; १-११ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'न्' का लोप; और ३-४६ से (तथा ३-५६ के निर्देश से)-संबोधन के एकवचन में संस्कृतीच प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राप्तांग 'अप्प' में स्थित अन्त्य 'अ' को 'आ' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप ह अप्पा ! सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप-हे अप्प ! की सिद्धि सूत्र संख्या ३-४९ में की गई है।
आत्मानः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन फा रूप है। इसका प्राकृत रूप अप्पाणो दोता है। इस में 'आत्मन-अप' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुमार; तत्पश्चात सूत्र संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'अप्प' में स्थित अन्त्य 'अ' के .'श्रागे प्रथमा बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'श्री' को प्राप्ति और ३-५० से (तथा ३-५६ निर्देश से.) प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में ाप्तीग प्रारमन से अप्पा' में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस' के स्थान पर प्राकृत में 'or' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्याणो रूप सिद्ध हो जाता है।
'चिन्ति' क्रियापद की सिद्धि सूत्र-संख्या ३.70 में की गई है।
आत्मनः संस्कृन द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप अप्पाणों होता है। इसमें 'अप्पा' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार; तापश्चात् सूत्र-संख्या ३-५० से (तथा ३-४६ के निर्देश से) द्वितीया विभक्ति के बहुश्चन में प्राप्तांग 'अप्पा' में संस्कृतीय प्रत्यय 'शम' के स्थान पर प्राकृत में 'ग' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्याणी रूप सिद्ध हो जाता है।
'पेच्छ' कियापा की सिद्धि सूत्र संख्या १-२३ में की गई है।
आत्ममा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप अप्पणा होता है। इसमें 'प्रात्मनप्प अंग को प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार, तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-५१ से (तथा ३.५६ के निर्देश से) तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा- श्रा' के स्थान पर