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* प्राकृत व्याकरण * +++++++++++ +&+++++++++++++++++++++%%%%%%%%% %+++++ + +++++++
प्रातरम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप भायर होता है। इसमें 'भायर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त साधनिका के समान, तत्पश्चात् शेष साधनिका सूत्र-संख्या ३-५ तथा १-२३ से 'जामायर' के समान होकर प्राकृत-रूप भायरं सिद्ध हो जाता है।
भ्रानुन् संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप मायरे होता है । इसमें 'भायर' अंग भी प्राप्ति उपरोक्तमाधानका के समान, तत्पश्चात शेष साधनिका की प्राप्ति सूत्र-संख्या ३-१४ धौर ३.'. हे समायरे माह ताकत का सारे सिद्ध हो जाता है।
प्रात्रा संस्कृन तृतीयान्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत सप भायरेण होता है । इसमें 'मायर' अंग कामाप्ति उपरो. सानिका के समान; तत्पश्चात शेष सानिका की प्राप्ति सूत्र-संख्या ३-१४ तथा ३-६ से 'जामायरेण' के समान ही होकर प्राकृत-रूप भायरे सिद्ध हो जाता है ।
धातुभिः तृतीयान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप भायरेहिं होता है। इसमें 'भायर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त साधनिका के समान; तत्पश्चात् शेष साधनिका की प्राप्ति सूत्र-संख्या ३-१४ तथा ३-७ से उपरोक्त 'पिअरेहिं अथवा 'जामायरहि' के समान ही होकर प्राकृत रूप 'भायरेहि' सिद्ध हो जाता है। ३.४७ ।।।
श्रा सौ न वा॥ ३-४८ ॥ दन्तस्य सौ परे आकारो यो भवति ॥ पिया । जामाया । भाया । कत्ता । पथे। पिरो । जामायरो । भायरो । कत्तारो ।
___ अर्थ:-संस्कृत ऋकारान्त शब्दों के प्राकन-रूपान्तर में प्रथमा-विभक्ति बोधक प्रत्यय 'सि' परे रहन पर शम्दान्त्य स्वर 'ऋ' के स्थान पर वैकलिपक रूप से 'या' की आवेश-प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:-पिता- पित्रा अथवा पिश्रगेजामाता-जामाया अथवा जामायरो; भ्रातामाया अथवा भायरो और कता कता अथवा फत्तागे; इत्यादि ।
"पिभा" रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १४४ में की गई है।
जामाता मंस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप जामायो और जामायरो होते हैं। इनमें से प्रथम रुप में सुत्र-संख्या १-१७७ से मूल संस्कृत शब्द 'जामात में स्थित 'स' का लोप; ३-४८ से लोप हुए 'त्' के पश्चात् शेष रहे हुए '' के स्थान पर 'श्रा' आदेश-प्राप्ति, १-२८० से
आदेश प्राप्त 'या' स्थान पर 'या' प्राप्ति; ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवषन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि''स्' की प्राकृत में भी प्राप्ति और १-११ से प्राप्त प्रत्यय 'स' का प्राकृत में लोप होकर प्रथम रूप जामाया सिद्ध हो जाता है।