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मुद्धाणो | मुद्धा || श्वन् | सायो | सा ।। सुकर्मणः पश्य || सुकम्माणे पेच्छ । निम्ह कह सो कम्माये । पश्यति कथं स सुकर्मण इत्यर्थः । पु'सीति किम् । शर्म । सम्भं ॥
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* प्राकृत व्याकरण *
अर्थ :--- जो संस्कृत शब्द पुल्लिंग होते हुए 'अन' अन्त वाले हैं; उसके प्राकृत रूपान्तर में उस 'अन्' अवयव के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'आप' (आदेश) की प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से जहां धन के स्थान पर 'आण आवेश की प्राप्ति नहीं होगी; वहीं उन शब्दों की विभक्तिबोधक-रूपावली 'राज' शब्द के समान उपरोक्त सूत्रों में वर्णित विधि-विधानानुसार होगी । 'अन' के स्थान पर 'आण' (आदेश) - प्राप्ति होने पर वे शब्द 'अकारान्त' शब्दों की श्रेणी में प्रविष्ट हो जायगे । और उनकी विभक्ति-बोधक-रूपावली 'जिण' आदि शब्दों के अनुरूप हो निर्मित होगी; तथा उनमें 'अतः से डों:' (३-२) आदि सभी सूत्र वे ही प्रयुक्त होंगे, जो कि 'जिण' आदि अकारान्त शब्दों में प्रयुक्त होते हैं। वैकल्पिक पक्ष में 'अन्' के स्थान पर 'आप' (आदेश) की प्राप्ति नहीं होने पर 'राज' के समान ही विभकि-बोधक-रूपावलि होने के कारण से उनमें जम शस असि-उस' णो(३-५०); 'टो-णा'-(३-२४) और 'इणममामा'- ( ३-५३) इत्यादि सूत्रों का प्रयोग होगा इस प्रकार अन अन्त वाले पुल्लिंग शब्दों की विभक्ति बोषक रूपावलि दो प्रकार से होती है; प्रथम प्रकार में 'अन्' के स्थान पर 'आप' (आदेश) की प्राप्ति होने पर 'अकारान्त शब्दों के समान ही रूपावलि - निर्मित होगी और द्वितीय प्रकार में 'आण' आदेश प्राप्ति का अभाव होने पर उनकी रूपावलि 'राज' शब्द में प्रयुक्त किये जाने वाले सूत्रों के अनुसार ही होगी । यह सूक्ष्म भेद ध्यान में रखना चाहिये ।
यहां पर सर्वप्रथम 'अन' अन्त वाले 'आत्मन्' शब्द में 'अन' अवयव के स्थान पर 'आप' देश-प्राप्ति का विधान करके इसको 'अकारान्त' स्वरूप प्रदान करते हुए जिए' आदि अंकारान्त - शब्दों के समान ही उक्त 'आत्मन - अप्पाण की विभक्तिबोधक रूपावलि का उल्लेख किया जाता है ।
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एकवचन
प्रथमा - ( आत्मा ) श्रपाणा द्वितीया - ( आत्मानम् -) अप्पा-1 तृतीया - ( चात्मना = ) अप्पाषेण । पञ्चमी - (आत्मनः = ) अप्पाणाश्रा | षष्ठी - (आत्मन: =) अप्पाणस्स | सप्तमी - ( आत्मनि) अप्पाणमि ।
बहुवचन (आत्मान: =) अप्पाणा । ( श्रात्मन) अप्पाणे । ( श्रात्मभिः =) अप्पाहि । (अस्मभ्य: =) अप्पाणा सुन्तो । ( अत्मनाम् = ) अपाखान | (आत्मसु =) अप्पासु ।
समास अवस्था में 'आत्मनं = अप्पाण' में रहे हुए विभक्ति-बोधक प्रत्ययों का लोप हो जाता अपने से अथवा आत्मा से किया हुआ
| जैसे:- श्रात्म कृतम् = पायं श्रर्थात खुद से स्वयं
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