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उत्तर:- संस्कृत शब्द 'राजन' के प्राकृत रूपान्तर में 'आज' अवयव के स्थान पर 'छ' (देश) की प्राप्ति उसो अवस्था में होती हैं, जब कि 'टा' अथवा 'सि' अथवा अस्' प्रत्ययों में से कोई एक प्रत्यय रहा हुआ हो; अन्यथा नहीं। जैसे:- राजानः तिष्ठन्ति रायाणी चिट्ठन्ति यह दाहरण प्रथमान्त बहुवचन वाला है और इसमें 'टा' अथवा 'सि' अथवा 'ङस्' प्रत्यय का अभाव है; इसी कारण से इसमें 'राजन' के अवयव 'आज' के स्थान पर 'अण्' आदेश प्राप्ति का भी अभाव है । दूसरा उदाहरण इस प्रकार है: - राज्ञः पश्य रायाणो पेन्छ अर्थात राजाओं की देखो; यह उदाहरण द्वितीयान्त बहुवचन वाला है और इसमें भी 'टो' अथवा 'सि' अथवा 'इस' प्रत्यय का अभाव है । इसी कारण से इसमें 'राजन' के अवयव 'आज' के स्थान पर 'श्रण आदेश नाप्ति का भी अभाव है । इस विवेचन से यह प्रमाणित होता है कि 'टा' 'णा'; 'दसि' = 'ए' और 'इस' = 'णो' प्रत्यय को सद् भाव होने पर ही राजन्' के 'आज' अवयव के स्थान पर 'श्रण (आदेश) को प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है और इसी लिये मूल सूत्र में 'दाङ-सि-कस' का उल्लेख किया गया है ।
* प्राकृत व्याकरण *
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प्रश्नः - मूल सूत्र में 'णा' और 'णो' का उल्लेख क्यों किया गया है।
उत्तर:- संस्कृत शब्द 'राजन' के प्राकृत रूपान्तर में तृतीया विभक्ति के एकवचन में जब सूत्र संख्या ३-५१ के अनुसार 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'णा' प्रत्यय की (आदेश) - प्राप्ति होकर सूत्र संख्या ३-६ के अनुसार 'टा' प्रत्यय के स्थान पर 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होती है तब 'राजन' शब्द के 'आज' अवयत्र के स्थान पर 'अ' आदेश प्राप्ति नहीं होती। जैसे::-राज्ञा =रायण अर्थात् राजा से । इसी प्रकार से इसी 'राजन' शब्द के प्राकृत रूपान्तर में पंचमी विभक्ति के एकवचन में जब सूत्र-संख्या ३-५० के अनुसार 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'खो' प्रत्यय की (आदेश)- प्राप्ति नहीं होकर सूत्र संख्या ३-८ के अनुसार 'इस' प्रत्यय के स्थान पर 'दोश्रो, उ हि, हिन्तो लुक् प्रत्यय की प्राप्ति होटो हैं; तब 'राजन्' शब्द के 'आज' अवयव के स्थान पर 'अण' ( प्रवेश) की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे:-- राः = रायाओ अर्थात् राजा से, इत्यादि । यही सिद्धान्त षष्ठी विभक्ति एकवचन के लिये भी समझना चाहिये; तदनुसार जब राजन्' शब्द के प्राकृत रूपान्तर में पष्ठी विभक्ति के एकवचन में मंत्र-संख्या ३-५० के अनुसार 'ङस्' प्रत्यय के स्थान पर 'णो' प्रत्यय की (आदेश) -प्राप्ति नहीं होकर मूत्र-संख्या ३-१० के अनुसार 'ङ' प्रत्यय के स्थान पर ' प्रत्यय की प्राप्ति होती है; तब 'राजन् ' के 'आज' अत्र के स्थान पर 'श्रण' (आदेश) की प्राप्ति नहीं होती हैं । जैसे: - राज्ञः = रायरस अर्थात् राजा का। इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से यह ज्ञात होता है कि जब 'टा' के स्थान पर 'ण' और इft' अथवा 'इस' के स्थान पर 'गो' की प्राप्ति होती है; तभी 'राजन' के 'आज' अवयय के स्थान पर 'अ' आदेश प्राप्ति होती है; अन्यथा नहीं। इसी लिये मूल सूत्र में 'या' और 'जो' का चकलेख करना पड़ा है।
शब्द
'रण' और 'राणा' रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या ३५१ में की गई है।
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