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११. ]
* प्राकृत व्याकरण .000000000000roverstorror000000xtorterrrrrrrrrontrastotrorren604
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आवेश-प्राप्ति का अभाव होगा; तब इसकी विभक्ति (बोधक) कार्य की प्रवृत्ति सत्र-संख्या ३.४६ से प्रारम्भ करके सूत्र-संख्या ३-५५ तक में वर्णित विधि-विधान के अनुसार होती है। इस महत्व पूर्ण स्थिति को सदेव ध्यान में रखना चाहिये ।
अब राजन रायाण' रूप की विभक्ति-जोधक कार्य की प्रवृत्ति नीचे लिखी जाती है:विभक्ति नाम एकवचन बहुवचन प्रथमा-(राजा = ) रायाणो। (गजान:-) रायाणा । द्वितीया-(राजानम् - ) राया। (राज्ञः-) रायाणे । तृतीया-(गज्ञा = ) रायाशेण ! (राजभिः=) रायाणेहि । पंचमी-(राज्ञः=) रायाणाहिन्तो (रोजभ्यरायाणासुन्तो। ... इत्यादि
इत्यादि । ) षष्ठी-(राझ) रायाणम्स । (राज्ञाम् =) रायाणाणे । सप्तमी-(राशि) रायाणम्मि। (राजसु-) रायाणेसु ।
शेष रूपों की स्थिति 'जिण' आदि अकारान्त शब्दों के अनुसार जानना चाहिये । वैकल्पिक पत्त होने से 'राजा-राया' आदि रूपों की स्थिति मूत्र-संख्या ३-४६ से प्रारम्भ करके सत्र-संख्या ३-५५ के अनुसार स्वयमेव जान लेना चाहिये । कुछ 'अन' अन्त वाले पुल्लिंग शब्दों का प्राकृतरूपान्तर सामान्य-अवधोधन हेतु नीचे लिखा जा रहा है:
युवन - जुवाण; तदनुमार प्रथमा विभक्ति के एकवचन का उदाहरण:---युवा-जुवाणो, इत्यादि । ममाम-अवस्था में विभक्ति (बोधक) प्रत्ययों का लोप हो जाता है; तदनुसार इसका उदाहरण इस प्रकार है:-युवा-जनः जुयाण-जणो । वैकल्पिक पक्ष होने से युवन' शब्द के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में सत्र संख्या ३-४६ के विधान से 'जुआ रूप भी होता है। ब्रह्मन शब्द के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संत्र-संख्या ३-५६ और ३-४६ के विधान से कम से एवं वस्पिक रूप से (मामा) बम्हाणी अयत्रा बम्हा रूप होते हैं।
संस्कृत शब्द 'श्रध्वन्', 'उक्षन', 'प्रावन्'. 'पूषन', 'तज्ञन', मूर्धन', और 'श्वन इत्यादि पुल्लिग होते हुए 'अन्' अन्त वाले हैं; तननुसार इन शब्दों के प्रथमा विभक्त के एकवचन में सत्र-संख्या ३.५६ और ३.४६ के विधान से कम से एवं वैकल्पिक रूप से दो दो रूप निम्न प्रकार से होते हैं:--
अध्वा = श्रद्धाणों और श्रद्धा । उक्षा = उच्छाणो और उच्छा । प्राया = गावाणो और गावा । पूषा - पूमाणो और पूमा । तक्षा तक्खाणो और तक्खा । मृर्धा = मुद्धाणो और मुद्धा । श्वा = साणों
और सा ! शेष विभक्तियों के रूपों की स्थिति 'पारमा - अपाण के समान जान लेना चाहिये । इस प्रकार यह सिद्धान्त निश्चित हुआ कि 'अन्' अन्त वाले पुष्ज्ञिग शब्दों के अन्तिम अवयव 'मन' के