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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध' के स्थान पर 'द' को प्राप्ति; ३-४२ से संबोधन के एकवचन में मूल शब्द 'वधू-बहू' में स्थित अन्त्य दीर्घ स्वर 'ऊ के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति और (-११ से प्रथमा विभक्ति के समान ही (संबोधन के एकवचन में) प्राप्त प्रत्यय प्सि' के स्थानीय रुप 'स' का लोप होकर संबोधनात्मक एकवचन में प्राकृतीय रुप 'हे प? सिद्ध हो जाता है ।
हे खलयु ! संस्कृत संबोधन के एकवचन का अप है। इसका प्राकृत रूप भी हे खलपु हो होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-४२ से संबोधन ने एकवचन में मून शब्द 'खलपू' में स्थित अन्त्य दोर्ष स्वर 'ऊ' के स्थान पर लस्व स्वर 'उ' को प्राप्ति और १-११ से प्रथमा विमक्ति के समान ही संबोधन के एक वचन में प्राप्त प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप 'स' को लोप होकर 'हे खलघु रूप सिद्ध हो जाता है
३-४२॥
क्विपः ॥३-४३ ॥ विपन्तस्येद्दन्तस्य हस्त्रो भवति ।। गामणिणा । खलपुणा । गामणिणो। खलपुणो ।
अर्थः-प्रामणी गामणी अर्थात गाँव का मुखिया और खलपू अर्थात दुष्ट पुरुषों को पवित्र करने पाला इत्यादि शब्दों में पी' और 'पू' आदि विशेष प्रत्यय लगाये जाकर ऐसे शब्दों का निर्माण किया. जाता है। इससे इनमें विशेष-अर्थता प्राप्त हो जाती है और ऐसी स्थिति में ये विषयन्त प्रत्यय वाले, शब्द कहलाते हैं । ऐसे त्रिचन्त प्रत्यय वालों शब्दों में जो दीघ ईकारान्त वाले और दीर्घ ऊकारान्त वाले शम्न हैं; उनमें विभक्ति-बोधक प्रत्ययों की संयोजना करने वाले अन्त्य दीर्घ स्वर 'ई' अथवा '' का हस्व स्वर 'इ' अथवा 'उ' हो जाता है और तत्पश्चात् विभक्ति-बोधक प्रत्यय संयोजित किये जाते है जैसे:-प्रामण्यो - गामणिया, अर्थात् प्राम- मुखिया द्वारा; खलप्वा खलपुणा अर्थात दुष्टों को (अथवा खलिहान को) साफ करने वाले से प्रामएयः = (प्रथमा-द्वितीया बहु वचनान्त)-गामणिणो अर्थात् गाँव मुखिया (पुरुषगण) अथवा गांव मुखियाओं को और खलप्वः = ( प्रथमा-द्वितीया बहुवचनान्त )
बलपुणो अर्थत् दुष्ट-पुरुषों ( या खलिहानों ) को साफ करने वाले अथवा साफ करने वालों को । इन सदाहरणों से प्रतीत होता है कि विभक्त बोधक प्रत्यय प्राप्त होने पर विबन्त शब्दों के अन्त्य दीर्घ स्वर हुष हो जाया करते हैं ।
'गामाणणा' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-२४ में की गई है। 'खलपुणा' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-४ में की गई है।
मामपयः संस्कृत प्रथमा-द्वितीया के बहु वचनान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप गामणिणो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-० से 'र' का लोप; -४३ से मूल शब्द 'गामणी' में स्थित अन्त्य दोघे स्वर
के स्थान पर हस्व स्वर 'ई' की प्राप्ति और ३-२२ से प्रथमा-द्वितीया के बहु वधन में संस्कृतीय