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# प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित #
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द्वितीया
के एक वचन में "स्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त "म" का अनुस्वार होकर न रूप सिद्ध हो जाता है ।
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धूम् संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन का स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप बहु होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से "घू" के स्थान पर "ह" की प्राप्तिः ३-३६ से दोर्घं "ऊकार" के स्थान पर ह्रस्व " उकार" की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में "म् प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त "म" का अनुस्वार होकर व रूप सिद्ध हो जाता है ।
हस्रमानीम् संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग का विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप इस्माणिं होता है । इसमें सूत- १९८१ से प्राम-धातु 'इस' में संस्कृतीच वर्तमान कन्त में प्राप्तम्ब प्रत्यय "आनच्" के स्थानीय रूप "मान" के स्थान पर प्राकृत में "माण" प्रदेश-प्राप्ति ३-३१ से तथा ३-३२ से प्राप्त प्रत्यय "माग" में स्त्रीलिंग - अर्थक प्रत्यय "की-ई" की प्राप्ति; एवं प्राप्त स्त्रीलिंग - अर्थक प्रत्यय “ढो" में ‘“हु ” इत्संशक होने से प्राप्त प्रत्यय "माग" में अन्त्य "अ" की इसझा होकर लोप तथा "ई" प्रत्यय को हलन्त "माए" में संयोजना होकर "हसमाणी" रूप की प्राप्तिः ३-३६ से दीर्ष 'कार' के स्थान पर ह्रस्व ' इकार" की प्राप्ति; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में "भू" प्रत्यय की प्राप्ति और १-५३ से प्राप्त "म" का अमुस्वार होकर हसमणि रूप सिद्ध हो जाता है।
समानाम् संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन स्त्रीलिंग का विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप समारं होता है। इसमें "हसमासु" तक की साधनिका उपरोक्त रोतिअनुसार ३-३१ की वृद्धि से प्राप्त रूप "हसमाण" में स्त्रोलिंग अर्थक प्रत्यय "य" की प्राप्ति; तनुसार प्राप्त रूप "समाजा" में ३-३६ से अन्य "आ" के स्थान पर "अ" की प्राप्ति ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में "म" प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त "" का अनुस्वार होकर "हसमाण" रूप सिद्ध हो जाता है ।
'येच्च्छ ” ( क्रियापद ) रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १.२३ में की गई है।
"माला" रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८२ में की गई है।
"सही" रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२९ में की गई है ।
"छ" रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३--१९ में की गई है । ३-३६ ।।
नामन्त्र्यात्सौ मः ॥ ३-३७ ॥
श्रमन्यार्थात्परे सौ सति क्लीवे स्वरान्म् से: ( ३- २५ ) इति यो म् उक्तः सन भवति ॥ हे वया । हे दहि । हे महु ।